Book Title: Mayavi Rani
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 128
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पराक्रमी अजानंद ११८ यों कहकर देवी ने तीनों को अच्छी सुन्दर भेंट-सौगातें दी और उन्हें विदा किया। उन तीनों को अपनी दैवी शक्ति से देवी ने सरोवर के किनारे छोड़ दिया। ५. अष्टापद पर्वत पर! अजानंद ने सरोवर मे से थोड़ा पानी एक तुम्बे में भर लिया और उन तीनों ने नगर की ओर प्रयाण किया। नगर में पहुंचने पर प्रजा ने और राजपरिवार ने बड़े शानदार ढंग से राजा का भव्य नगर-प्रवेश करवाया। ___ अजानंद एक महीने तक दुर्जय राजा के साथ रहा। एक दिन मौका पाकर उसने राजा के सामने अपनी वहाँ से जाने की इच्छा व्यक्त की। हालांकि राजा को अजानंद की बात सुनकर बहुत दुःख हुआ। पर आखिर मेहमान तो मेहमान ही ठहरा... आज नहीं तो कल चले जाने का! अजानंद अपने मनुष्यरूपधारी मगर-मित्र को साथ लेकर वहाँ से चल दिया। जिस सुरंग के जरिये वह इस नगर में आया था... उसी सुरंग में से होकर वह बाहर निकला | सुरंग उस यक्षमन्दिर में पहुँचाती थी। अजानंद यक्षमन्दिर में पहुँच गया । वहाँ उसने अपने मित्र मनुष्यरूपधारी बन्दर को बैठे हुए देखा । अजानंद ने आश्चर्य से पूछा : 'अरे दोस्त! क्या इतने महीनों से तू यहीं पर बैठा हुआ है?' 'हाँ...और जाऊँ भी कहाँ? मैं तो तुम्हारा इन्तजार करता हुआ यहीं पर बैठा हूँ!' अजानंद को उसकी दोस्ती पर बड़ी खुशी हुई। उसने बन्दर-मनुष्य को भी अपने साथ ले लिया। तीनों दोस्त वहाँ से आगे बढ़े। अभी तो वे दो सौ-तीन सौ कदम ही चले होंगे कि उन्होंने एक सुन्दर स्फटिक रत्न जैसे चमकते-दमकते पत्थरों से रची हुई बावड़ी देखी। पास में छोटे-छोटे सुन्दर विमानों का काफिला पड़ा हुआ था। अजानंद ने सोचा कि 'जरुर बावड़ी में लोग होने चाहिए।' उसने बावड़ी की दीवार के सहारे सट कर खड़े रहते हुए अंदर झाँका | बावड़ी में बीस-पच्चीस अप्सरा जैसी औरतें जलक्रीड़ा कर रही थी...वे औरतें इतनी खूबसूरत थी कि अजानंद को पलभर के लिए विचार आ गया : 'क्या ये देवियाँ होंगी?' परन्तु उनकी आँखों की पलकें झपकती थी। अतः For Private And Personal Use Only

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