Book Title: Mayavi Rani
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 149
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पराक्रमी अजानंद १३९ अजानन्द सोच में पड़ गया। 'जरूर कोई देव या देवी मुझे बता रहे हैं कि मेरी माँ इस नगर में ही है। मुझे सचमुच धिक्कार है...मैं मेरी जन्मदात्री माँ को भी याद नहीं करता! राज्य और रानियों के सुख में माँ को भी भूल बैठा । अच्छा व्यक्ति तो जीवनपर्यन्त माँ की आज्ञा को सर पर रखता है... जब कि मैंने तो माँ को याद भी नहीं की...माँ को भुला ही दिया!' ___ अजानन्द की आँखों में आँसू उभर आये। रुमाल से आँसू पोंछकर उसने वहीं पर मंत्री को बुलाकर कहा : 'मंत्रीश्वर, अपने नगर में ही किसी स्थान पर मेरी पूजनिया माँ रहती है। उसे खोज निकालना चाहिए। उसके दर्शन करने के बाद ही मैं भोजन करूँगा। यह मेरी प्रतिज्ञा है।' इस तरह कहकर वह रानियों के साथ महल में गया | महल में जाकर, महल के पुराने नौकरों को बुलाकर कहा : ‘अपने नगर के किले के बाहर दक्षिण दिशा की ओर एक वाग्भट्ट नाम का ग्वाला रहता है। उसे पूछो कि उनके कोई लड़का था क्या?' नौकर लोग जाकर लौटे | उन्होंने बताया : 'वाग्भट्ट का कहना है कि उनके कोई पुत्र जन्मा नहीं है...परंतु रास्ते पर से एक बच्चा उन्हें मिला था, उसे उन्होंने बेटे की भाँति रखा था पर वह तो बारह साल पहले ही गुम हो गया है।' ___ अजानन्द ने सोचा : 'अब मेरे सच्चे माता-पिता की तलाश करनी चाहिए।' उसने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया : 'कोई भी आदमी राजा की माँ के बारे में जानकारी देगा, उसे राजा खुश होकर भारी इनाम देगा। ढेर सारा धन देगा।' सारे नगर में जोर-जोर से ढिंढोरा पिटवाया गया, पर किसी ने भी आकर राजा की माता के बारे में जानकारी दी नहीं। अजानन्द ने खाना-पीना छोड़ दिया था। पूरे राजमहल में शोक और उदासी का वातावरण फैल गया। इतने में एक रोगी बुढ़िया औरत अजानन्द के पास आई और उसने कहा : 'राजन्, तू यदि मेरा रोग मिटा दे तो मैं तेरी माँ को खोज के ला सकती अजानन्द तो खुशी से नाच उठा। उसने कहा : 'यदि तू मेरी माँ से मुझे For Private And Personal Use Only

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