Book Title: Mayavi Rani
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 150
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० पराक्रमी अजानंद मिला देगी, तो मैं तेरा कैसा भी रोग होगा...जरुर मिटा दूंगा। जब तक तेरा रोग दूर नहीं होगा मैं खाना-पीना नहीं लूंगा।' वह रोगी स्त्री महल के बाहर गई और जैसी गई वैसी ही लौट आई, साथ में एक अन्य औरत को लेकर । अजानन्द से उस बुढ़िया ने कहा : 'लो यह तुम्हारी पूजनीय माता!' अजानन्द आँखें फाड़कर माँ के सामने देखता ही रहा... देखता ही रहा! ९. अजानन्द ने निजानन्द प्राप्त किया गंगा ने अपने कोंखजाए को देखा! माँ-बेटे दोनों एक दूसरे को देखते ही रहे...| गंगा के अंग-अंग में सिहरन फैल गई... गंगा के सीने में से दूध बहने लगा। उसकी आँखें खुशी के आँसुओं से छलक उठी। अजानन्द के मन में निर्णय हो गया कि 'यह औरत ही मेरी माँ है।' वह सिंहासन पर से खड़ा हो गया। माँ के समीप जाकर उसके चरणों में नमस्कार किया। 'माँ, मेरे पिताजी कहाँ है?' 'बेटा, तेरे पिताजी का स्वर्गवास हो गया है!' 'माँ, अपना वियोग कैसे हुआ? मैं आपसे अलग कैसे हो गया?' 'बेटा...तेरे पिता का नाम था धर्मोपाध्याय और मेरा नाम गंगा | तेरा जन्म हुआ तब तेरे पिता ने तेरी जन्मकुंडली बनाई। तेरा भविष्य देखा। 'तू राजा बनेगा,' यह जानकर वे बेचैन हो उठे । 'अरे...मेरा लाड़ला...एक ब्राह्मण का बेटा राजा बनेगा? राजा लोग तो अधिकांश नरक में ही जाते हैं। मेरा पुत्र नरक में जाएगा? मेरे पुत्र का पुत्र भी राजा बनेगा, वह भी नरक में जाएगा...। मेरी संतति नरकगामी होगी? नहीं...मुझे यह पुत्र चाहिए ही नहीं!' यों सोचकर उन्होंने मुझसे कहा : __ 'इस पुत्र को तू निर्जन वन में छोड़ के आ जा।' मैंने मना किया। पर उन्होंने अपनी जिद नहीं छोड़ी! बेटा, मैंने कभी अपनी जिन्दगी में तेरे पिता की किसी भी इच्छा का अनादर या उल्लंघन नहीं किया था। मेरे तो वे सर्वस्व थे। इसलिए तुझे अत्यंत प्यार के साथ मैंने निर्जन रास्ते पर इस तरह रख दिया कि आनेवाला कोई भी तुझे देख सके! बस, उसके बाद तेरा क्या हुआ, वह भी मुझे कुछ मालूम नहीं है...। इसके बाद तो मैंने आज ही तुझे देखा है!' For Private And Personal Use Only

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