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चोर की चतुराई! महामंत्र की भलाई!
६. चोर की चतुराई।
A महामंत्र की भलाई! उत्तरमथुरा नाम का एक बहुत बड़ा गाँव था। उस गाँव में 'रूपा' नाम का एक चोर रहता था। रूपा बड़ा दुष्ट था...खराब था! वह मांस खाता...शराब पीता...जुआ खेलता...और शिकार भी करता था! रोजाना वह किसी न किसी सेठ के घर में चोरी करता। पर रूपा चालाक इतना था कि कभी भी पकड़ा नहीं जाता था!
एक दिन रूपा ने जुआ खेलने में काफी रुपये कमाये| रुपये लेकर वह अपने घर जाने के लिये निकला। रास्ते में उसे कुछ भिखारी मिले । न जाने रूपा के मन में क्या आया!! उसने गरीब भिखारियों को रुपये देना चालू किया। भिखारी भी खुश होकर रुपये ले रहे थे। रास्ते ही रास्ते मे पाँच घंटे बीत गये! सारे रुपये उसने बाँट दिये थे। उसे जोरों की भूख लगी थी। वह अपने घर की ओर चला।
रास्ते में राजा का महल आया। महल के झरोखे में से बढ़िया खुशबू आ रही थी। वह दो मिनट खड़ा रह गया... | 'ओह...यह तो बढ़िया ताजी मिठाई की खुशबू है! कितना मीठा भोजन तैयार हो रहा होगा राजमहल में!'
रूपा की जीभ लपलपाने लगी। उसे भूख भी जोरों की लगी थी। उसने अपने मन में सोचा : 'चलो, आज तो राजा के सामने बैठकर राजा की थाली में से ही भोजन करेंगे।'
रूपा के पास आँखो में डालने का ऐसा अंजन था कि जिसे आँखों में आंजने पर वह अदृश्य हो जाता! कोई उसे देख नहीं सकता था!
रूपा एक कोने में गया । जेब में से अंजन की शीशी निकाली। दोनों आँखों में उसने अंजन लगा दिया। वह अदृश्य हो गया। किसी से अपना शरीर टकरा न जाये इसकी सावधानी रखते हुए वह महल में घुस गया। एक के बाद एक कमरे में से गुजरता हुआ सीधा राजा के भोजनालय में पहुँच गया। राजा पद्मोदय भोजन करने के लिये बैठा हुआ था। अभी उसने भोजन चालू किया ही था। रूपा ठीक उसके सामने जाकर जम गया । वह भूखा तो था ही। मीठी-मधुर और स्वादिष्ट रसोई देखकर उसके मुँह में पानी भर आया । थाली में से उठा-उठा कर वह कौर भरने लगा, भोजन करने लगा। राजा एक कौर
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