Book Title: Mayavi Rani
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 107
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पराक्रमी अजानंद ९७ जंगल में फिंकवा दिया... ठीक है...राजा ने अपनी मनमानी की... पर देवी का वचन झूठा तो होगा नहीं! भविष्य में मैं एक लाख सैनिकों का सेनापति होऊँगा यह पक्की बात है...और इस दुष्ट राजा को खत्म करूँगा यह भी नक्की बात है। ठीक है... आज मैं दुःख में हूँ | पर मैं डरता नहीं हूँ | मुझ में हिम्मत है... मेरी ताकत, मेरा जोश ही मुझे सब जगह विजय दिलाएगा। हिम्मत रखकर ही मुझे आगे बढ़ना होगा। मैं ऐसे पापी राजाओं को खत्म करकें उनके राज्यों को जीतता रहूँगा।' ऐसा सोचकर वह खड़ा हुआ । उसे भूख लगी थी। उसने वहाँ पर कुछ वृक्ष खोज निकाले... और उनके फल खा लिये। पानी के झरने के पास जाकर पानी पी लिया। उसके शरीर में ताजगी आ गई। वह जंगल में आगे बढ़ने लगा। रास्ते में उसने लम्बे-लम्बे साँप देखे। बड़े-बड़े अजगरों को पेड़ों से लिपटे हुए देखे। फिर भी बिल्कुल नीडर होकर वह चलता रहा। चलते-चलते रात घिर आई... उसने एक पेड़ पर चढ़कर डालियों की घटा में विश्राम किया। रात बीत गई। सुबह में नीचे उतर कर वह आगे बढ़ा। एक वृक्ष पर उसने सुन्दर फल देखे। वह जानता था उन फलों को। पेड़ पर चढ़कर उसने वे फल तोड़े और मजे से खाये | नीचे उतर कर आगे चला। रास्ते में एक नदी आई... उसने पानी पीया...और सामने किनारे पर नजर फेंकी तो एक शेरनी अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ खड़ी थी और उसके सामने देख रही थी। अजानंद पहली बार शेरनी और उसके शावकों को देख रहा था! उसे डर तो था ही नहीं! कुछ देर बाद शेरनी बच्चों के साथ जंगल में अदृश्य हो गई। अजानंद नदी के किनारे-किनारे चलने लगा। यों उसने तीन दिन और तीन रात जंगल में गुजारी। चौथे दिन उसने दूर एक गाँव देखा...उसके चेहरे पर चमक आई। वह जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ उस गाँव की ओर चला। गाँव दूर था। रास्ते में एक मंदिर आया। मंदिर काफी पुराना नजर आ रहा था। पर सूर्य के प्रकाश में उसके सफेद पत्थर चमक रहे थे। वह एक यक्षदेव का मंदिर था । अजानंद ने मंदिर में प्रवेश किया। वहाँ पर उसने एक अग्निकुंड देखा | कुंड में आग सुलग रही थी और उस कुंड के इर्द-गिर्द चार पुरुष बैठे हुए थे। अजानंद ने उनकी तरफ गौर से देखा | चारों पुरुष केवल कौपीन पहनकर बैठे थे। दिखने में चारों गरीब-दीन लग रहे थे। उनके चेहरे पर निराशा छाई हुई थी। चारों मौन थे। जैसे कि वे किसी गंभीर सोच में डूबे हुए थे। For Private And Personal Use Only

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