________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पराक्रमी अजानंद ___ 'पर ऐसे सुन्दर-सलोने से बच्चे को जन्म देनेवाली माँ कैसी पत्थरदिल होगी...कि अपने इतने प्यारे बेटे को रास्ते पर छोड़ गई। उसका दिल कैसे माना होगा बेटे को छोड़ते हुए? अच्छा हुआ तुम उसे यहाँ ले आये...हम इसे पाल-पोष कर बड़ा करेंगे। अपना सूना-सूना घर अब चहकने लगेगा। पर हम इसका नाम क्या रखेंगे?'
'ऐसा करें... इसने दूध पीया है अपनी अजा का! (अजा यानी बकरी) हम इसका नाम 'अजानंद' रखें तो? कैसा लगा तुझे यह नाम? पसंद है ना?'
'अरे...वाह! कितना बढ़िया नाम खोज निकाला है...अजानंद! मेरा लाड़ला अजानंद!' कहकर वाग्भट्ट की पत्नी ने बच्चे को चूम लिया।
वाग्भट्ट और उसकी पत्नी अजानंद को बड़े लाड़-प्यार के साथ पालने लगे। अजानंद ज्यों-ज्यों बड़ा होने लगा, त्यों-त्यों उसके गुण प्रगट होने लगे। उसका पुण्य भी बढ़ने लगा।
अजानंद अपने पिता के साथ भेड़-बकरी चराने के लिए अक्सर जंगल में भी जाने लगा। पशु भी अजानंद से हिल-मिल गये... वह बकरी, जिसने नन्हे अजानंद को दूध पिलाया था, वह तो बस अजानंद के आसपास ही घूमती है...अजानंद की इस तरह संभाल रखती है...जैसे उसकी पूर्वजन्म की माँ हो! ___ जब अजानंद सोलह बरस का हुआ...तब वाग्भट्ट अकेले अजानंद को पशु चराने भेजने लगा। एक दिन की बात है :
अजानंद पशुओं को लेकर जंगल में गया था। पशु सब खेतों में चारा चर रहे थे और अजानंद एक पेड़ के नीचे बैठा हुआ था... और पशुओं पर नजर रख रहा था। इतने में वहाँ, उस नगर का राजा चन्द्रापीड़ अपने काफिले के साथ आ पहुँचा | राजा शिकार पर निकला हुआ था। धूप और थकान से वह परेशान हो उठा था । विश्राम करने के लिए वृक्ष के नीचे आकर बैठा । अजानंद एक तरफ जाकर खड़ा हो गया ।
इतने में वहाँ पर एक चमत्कार सा हुआ। अचानक आकाश में से एक दिव्य स्त्री वहाँ पर उतर कर आई... वह जमीन से ऊपर हवा में खड़ी रही। उसके गले में ताजे खिले हुए खुशबूदार फूलों की माला थी। उसका रूप लावण्य अद्भुत था। उसने राजा चन्द्रापीड़ को, अजानंद की तरफ उंगली उठाकर कहा :
'ओ राजा, आज से ठीक बारह बरस के बाद यह अजानंद यहाँ पर आयेगा... उसके साथ एक लाख सैनिक होंगे। तुझे मारकर यह लड़का इस नगरी का राजा बनेगा।'
For Private And Personal Use Only