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चोर की चतुराई! महामंत्र की भलाई! _ 'अरे बेवकूफों, क्या तुम मोटे हो तो अपने आप को ज्यादा ही समझने लगे हो क्या? मुझे डरा रहे हो...? पर तुम मोटे कर क्या सकोगे? जिसमें ताकत होती है...तेज होता है...वह शक्तिशाली होता है, फिर वह दुबला ही क्यों न हो! अरे...हाथी कितना भी लम्बा-चौड़ा होता है? पर एक छोटे से अंकुश से दब जाता है ना! पहाड़ कितना ही बड़ा क्यों न हो, पर वज्र की मार से चूरचूर हो जाता है ना।' इतना कह कर रूपादेव ने डंडे को घुमाया! दो-चार सैनिकों को मार गिराया...और दस-बारह सैनिक उसका सामना करने के लिये उस पर झपटे तो डंडे मार-मार कर उनकी भी पूरी धूलाई कर दी!
एक सैनिक जान बचाकर भागा-भागा राजा के पास पहुँचा | राजा से कहा : 'महाराजा, हम तो मर गये! जिनदत्त सेठ की हवेली के दरवाजे पर एक दुबला-पतला पर बड़ा ही तेजस्वी आदमी हाथ में डंडा लेकर खड़ा है। उसने अपने पाँच सैनिकों को मार डाला। और दस-बारह को बेहोश कर डाला।'
राजा तो सुनकर आपे से बाहर हो गया। उसका गुस्सा खौल उठा। उसने दूसरे पच्चीस सैनिक भेजे । रूपादेव ने उन सबको भी पहुँचा दिया मौत के दरवाजे पर | राजा खुद ही बड़ी सेना लेकर आया । रूपादेव ने सारी सेना को तितर-बितर करके सबको मार भगाया। राजा तो घबरा उठा। इधर रूपादेव ने भयंकर राक्षस का रूप रचाया । राजा डर के मारे भागने लगा। रूपादेव ने गर्जना की-'दुष्ट राजा, जाता है कहाँ? तू जहाँ जायेगा वहाँ पर मैं तेरा पीछा करूँगा। तुझे मारकर ही दम लूँगा। आज तेरी मौत तुझे बुला रही है।'
राजा सकपका कर रूपादेव के चरणों में गिर गया और रोते रोते बोलने लगा : 'मुझे मत मारो...मुझे छोड़ दो... मैं आपकी पूजा करूँगा।
देव ने कहा : 'गाँव के बाहर जो सहस्त्रकूट जिनमंदिर है, वहाँ पर अभी जिनदत्त सेठ धर्मध्यान में मग्न हैं। यदि तू उनके चरणों में जायेगा तो मैं तुझे कुछ नहीं करूँगा। तू उनके चरणों में नहीं गया तो मैं तुझे छोड़नेवाला नहीं
___मरता क्या नहीं करता? राजा वहाँ से सर पर पैर रखकर भागा! दौड़कर सहस्त्रकूट जिनमंदिर में पहुँचा। जिनदत्त वहाँ पर धर्मध्यान कर रहे थे। राजा तो सीधा जाकर सेठ के चरणों मे गिर गया। 'ओ सेठ मुझे बचा लो... मैं तुम्हारी शरण में आया हूँ। मेरी रक्षा करो। सेठ, मुझ पर कृपा करो...।'
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