Book Title: Mayavi Rani
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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श्रेष्ठिकुमार शंख
५७ सभी के साथ शंख चलने लगा। रात घिर आई थी। पर उजियारी रात होने से सभी मुसाफिर निश्चित होकर चल रहे थे। रात का एक प्रहर पूरा हो गया था।
अचानक रास्ते के दोनों तरफ से नंगी तलवारों के साथ पचास डाकू आ गये। जिन व्यापारिओं के पास घोड़े थे वे तो भाग गये। काफी खच्चर भी जंगल में इधर-उधर दौड़ गये। मुसाफिर लोग भी आपाधापी मे दौड़ने-भागने लगे। परंतु डाकुओं ने कई खच्चरों को पकड़ कर उन पर लदा हुआ माल लूट लिया। नौ पुरुषों को जिन्दा पकड़ लिये...जिन्होंने सामना करने की कोशिश की उनको तलवारों से मार डाले।
डाकुओं ने शंख को भी जिन्दा पकड़ लिया। लूट का माल और दस आदमियों को लकेर डाकू अपनी पल्ली में गये। वहाँ पर पल्लीपति 'मेघ' के पास जाकर धन-माल की गठरियाँ रखी और कहा : __'हम इन दस पुरुषों को जिन्दा पकड़ लाये हैं और यह धन-माल भी ले आये हैं।'
पल्लीपति ने अपने साथियों को शाबाशी देते हुए कहा : 'इन दस आदमियों को अच्छी तरह से रखना। इनके शरीर पर एकाध भी घाव न हो इस बात की सावधानी रखना । अभी एक और ग्यारहवाँ आदमी चाहिये । मेरा लाड़ला बेटा किसी भूत-व्यंतर से पीड़ित है। मैंने ग्यारह पुरुषों का बलिदान देने की मनौती कर रखी है। तुम एक और पुरुष को खोज लाओ, फिर मैं एक साथ ही ग्यारह बलि देवी के चरणों में चढ़ा दूंगा।'
डाकुओं ने शंख सहित दसों आदमियों को मजबूत रस्से से जानवर की भाँति बाँध दिया। एक अँधेरी कोठरी में उन्हें डाल दिया। रोज उन्हें भोजनपानी वगैरह दिया जाने लगा।
कुछ दिन बाद डाकू एक और पुरुष को पकड़ लाये । अब ग्यारह पुरुष हो चुके थे। डाकू सरदार ने उन ग्यारह पुरुषों को नहलाया, श्वेत (सफेद) कपड़े पहनाये, गले मे लाल फुलों की मालाएँ डाली । मस्तक पर तिलक किया और उन्हें देवी चंडिका के मंदिर में ले गया। डाकू सरदार ने उन ग्यारह पुरुषों से कहा : __'तुम्हें तुम्हारे इष्टदेव को याद करना हो तो कर लो, आज मैं तुम्हारा बलिदान देनेवाला हूँ।' दूसरे सभी पुरुष तो डर के मारे काँपने लगे...रोनेकलपने लगे। पर शंख निर्भय था । बड़ी स्वस्थता से आँखे मूंदकर श्री नवकार
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