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श्रेष्ठिकुमार शंख
५२ 'ओह कुमार? आ गये तुम चारों दोस्त!' 'जी हाँ, महात्माजी!' 'तो फिर अब एक मिनट का भी विलंब किये बिना यहाँ से हम चल दें।'
सब से आगे ज्ञानकरंडक बाबा चला। उसके पीछे शंख चला... उसके पीछे भुवनचन्द्र चलने लगा। उसके पीछे अर्जुन और सब से पीछे सोम चलने लगा।
अभी तो प्रयाण करके पन्द्रह-बीस कदम ही चले थे कि एक के बाद एक अपशकुन होने लगे| चारों मित्र की बाँयी आँख फड़कने लगी।
शंख ने कहा : 'भुवन, मेरी बाँयी आँख फड़क रही है...।' 'मेरी भी बाँयी आँख फड़क रही है।' भुवचन्द्र ने कहा। अर्जुन और सोम भी बोल उठे : 'मेरी भी बाँयी आँख फड़क रही है।'
इतने में दाहिनी तरफ से जोर-जोर से गधे के रेंकने की आवाज आई। सोम ने अर्जुन से कहा : 'अर्जुन, शकुन अच्छे नहीं हो रहे हैं।'
इधर हवा भी सामने से जोरों की चलने लगी। अर्जुन ने सोम से कहा : 'यह भी खराब शकुन है।' सोम ने कहा : 'हम चले तभी मुझे तो ठोकर लगी थी...तभी से अपशकुन चालू हो गये हैं। इतने मे शंख चिल्लाया : 'बाबाजी, काला साँप रास्ता काट गया अभी-अभी...बड़ा ही खराब शकुन हुआ...हमको अभी आगे नहीं बढ़ना चाहिए।' ___ अर्जुन ने कहा : 'शंख, जरा ध्यान से देख चारो दिशा में धूल के गोटे उड़ते दिखाई दे रहे हैं...यह भी अच्छी बात नहीं है।'
शंख ने भुवनचन्द्र से कहा : 'कुमार, हम तीनों का कहा मानो तो अभी इस वक्त आगे नहीं बढ़ना चाहिए। शकुन हम को आगे बढ़ने से रोक रहे हैं | चेतावनी दे रहे हैं। शकुन देखे बगैर प्रयाण करने से कार्य सिद्ध नहीं होता है। इसलिए हमको वापस लौट जाना चाहिए।' ___शंख की बात सुनकर भुवनचन्द्र खामोश रहा... चूंकि उसके दिल-दिमाग पर तो पातालकन्याएँ ही छाई हुई थीं। पर बाबा बोला :
'तुम सब क्यों इतने डर से मर रहे हो? तुम में से कोई भी शकुन का परमार्थ जानते ही नहीं हो और कभी के चिल्ला रहे हो...पाताललोक की
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