Book Title: Mayavi Rani
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 50
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० राजकुमार अभयसिंह श्मशान में छोटे-छोटे बच्चों के मुर्दे गाड़ दिये जाते थे वहाँ पर पहुंचा और एक ताजे गाड़े हुए बच्चे के शरीर को बाहर निकाला। टोकरे में छुपाया और उस पर कपड़ा डालकर वह राजमहल में चला आया। ___ उसने वापस भोजन बनाया । राजा खाना खाने के लिए आया । उसने राजा को भोजन परोसा। राजा को वह भोजन काफी स्वादिष्ट लगा। उसने रसोईये से पूछा : 'आज का भोजन काफी अच्छा लग रहा है... क्या बात है? किसका मांस पकाया है आज?' पहले तो रसोईया घबरा उठा। उसने काँपते हुए हाथ जोड़कर राजा से कहा : 'महाराजा, आप मुझे सजा नहीं करें तो मैं आपको सही बात बताऊँ!' 'अरे... सजा काहे की? तुझे तो मैं इनाम दूँगा। कितना बढ़िया खाना बनाया है तूने! पर यह बता पहले कि खाना बनाया किस चीज का है?' 'जी... महाराजा, आज मैंने बच्चे का मांस पकाकर खाना बनाया है...' यों कहकर जो बात हुई थी वह सारी बात कह दी। ___ 'ठीक है, मैं और कुछ नहीं चाहता, मुझे अब रोजाना ऐसा ही खाना चाहिये। तू व्यवस्था कर देना...आज से तेरी तनख्वाह भी दुगनी कर दी जायेगी। पर मुझे आज जैसा ही भोजन रोज मिलना चाहिए।' ___ 'जैसी आपकी इच्छा और आज्ञा, महाराजा! आपको खुश करना तो मेरा फर्ज है!' रसोईया भी खुश हो उठा। अब तो वह रोजाना एक जिन्दे बच्चे को पकड़-पकड़ कर लाने लगा...और मारने लगा। राजा के लिये भोजन बनने लगा। राजा भी पेट भरकर खाने लगा। __ सारे नगर में हाय-तौबा मच गया। हर एक माता-पिता अपने बच्चों को छुपा-छुपा कर रखने लगे। लोगों को मालूम पड़ गया था कि अपना पापी राजा खुद ही अपने बच्चों को पकड़वा कर मारता है और उन्हें खा जाता है। राजा के लिये प्रजा में गुस्सा खौलने लगा। लोग भगवान से प्रार्थना करने लगे कि 'यह राजा जल्दी मर जाये तो अच्छा!' एक दिन राजा महल की छत पर बैठा था। उसके मन में विचारों के बादल छाये जा रहे थे। उसने सोचा : 'मेरी प्रजा काफी बौखला उठी है... क्या ये लोग मुझे राजगद्दी पर से नीचे तो नहीं उतार देंगे? मुझे राज्य में से जबरदस्ती निकाल तो नहीं देंगे ना?' For Private And Personal Use Only

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