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राजकुमार अभयसिंह
४३ गया...और तुम मुँह बाये छोकरी की तरह खड़े रहे...शरम नहीं आयी तुम लोगों को?'
राजा का चेहरा तमतमा उठा। वह महल की छत पर चला गया। इधर सैनिक लोग बेचारे चेहरा लटकाये हुए अपने-अपने घर पर चले गये ।
दूसरे ही दिन एक अजीब घटना घटी।
राजा का प्रिय हाथी अचानक पागल हो गया। जिस खंभे के साथ इसे बाँध रखा था, उस खंभे को उखाड़ कर वह नगर के बीच रास्ते पर दौड़ने लगा। जो कोई रास्ते में सामने मिलता है उसे वह कुचल देता है! सूंढ में उठाकर पटकता है...दुकानो को तहस-नहस कर देता है...वृक्षों को उखाड़-उखाड़ के फेंक देता है। ___ सारे नगर में अफरा-तफरी मच गई। लोग अपने-अपने घर और दुकानों के छप्पर पर चढ़ गये | हाथी को पकड़ने के लिये... काबू में लेने के लिये...राजा के सैनिक पीछे दौड़ रहे हैं...| महावत अंकुश लेकर भागा... पर किसी के बस का रोग नहीं रहा था वह तूफानी हाथी!
इधर उस वक्त राजा मानसिंह की राजकुमारी कनकवती नगर के बाहर कामदेव की पूजा करके, वापस लौट रही थी...। उसकी ओर हाथी ने देखा...। राजकुमारी के साथ उसकी दस-बारह सहेलियाँ भी थी। हाथी उनकी तरफ लपका। हाथी को अपनी तरफ आते देखकर सभी थर्रा उठी... 'बचाओ... बचाओ...' की चीखें निकलने लगी...उनके मुँह से |
अभयसिंह अपने घर से निकलकर बाजार में आ रहा था। उसने लोगों का कोलाहल सुना। स्त्रियों की चीख-चिल्लाहट... बचाओ...बचाओ...' की पुकार उसने सुनी। वह जल्दी-जल्दी बाजार में आया।
हाथी राजकुमरी की ओर तूफानी वेग से चला आ रहा था। राजकुमारी बावरी-सी होकर असहाय हो उठी थी। उसकी सहेलियाँ आसपास के मकानों के चबुतरे पर चढ़ गई थी। राजकुमारी असहाय-अकेली हो गई थी।
अभयसिंह शघ्रता से हाथी के पास पहुँचा। अपनी तमाम शक्ति एकत्र करके उसने हाथी की सूंढ पर लात मारी | मुष्ठि-प्रहार किया। हाथी ने घूर कर अभयसिंह को देखा । वह अभयसिंह की ओर मुड़ा। अभयसिंह ने हाथी को थकाने की चाल चली। वह हाथी के इर्द-गिर्द गोल-गोल घूमने लगा। भारी-भीमकाय हाथी बेचारा गोल-गोल घूम कर थकने लगा। उसके शरीर
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