Book Title: Mayavi Rani
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मायावी रानी और कुमार मेघनाद १६ राक्षस ने कहा : 'यह कटोरा आदमी का मांस नहीं देता है। इससे मैं आदमी का मांस माँग भी नहीं सकता! और मेरे पापों के कारण मुझे आदमी का मांस खाने की आदत पड़ गयी है...| पीछले छह महीनों से मैंने आदमी का मांस चखा नहीं है। मैं भूख से जल रहा हूँ! मेरी किस्मत है... मुझे ऐसा कोमल शरीरवाला आदमी आज मिल गया है, भोजन के लिये! उसमें तू रुकावट करने आ गयी... और कोई ऐरी-गैरी औरत होती तो मैं परवाह भी नहीं करता! पर तू पतिव्रता-शीलवती नारी है...। तू शील का कवच पहन कर आयी है, मैं तुझे कुछ नहीं कर सकता! मैं नीच जाति का हूँ! फिर भी तेरी पतिभक्ति से, तेरे शीलव्रत से और तेरी साहसिकता से मेरा मन तेरे ऊपर रीझ उठा है...। तुझ पर मुझे दया आती है | मैं जानता हूँ कि तुच्छ मांस के लोभ में मैं यह दिव्य कटोरा देने की बड़ी मूर्खता कर रहा हूँ...। एक फूटी कौड़ी के लिये जैसे कीमती चिंतामणी रत्न लुटा रहा हूँ...| ले यह कटोरा...!!' राक्षस ने मदनमंजरी को दिव्य कटोरा दे दिया। राक्षस ने कटोरा देकर कहा : 'यह कटोरा तुझे जिन्दगी भर तक सुख-वैभव देगा। और मैं भी तेरे इस पति का भक्षण करके तृप्त हो जाऊँगा! अब तू स्वस्थ होकर अपने स्थान पर चली जा, तेरा कल्याण होगा!' मदनमंजरी अजीब उलझन में फँस गई, पर उसके दिमाग में अचानक कुछ सूझा । उसने राक्षस को हाथ जोड़कर कहा : 'राक्षसराज, आपने मुझ पर बड़ी कृपा की है यह दिव्य कटोरा देकर! इसके प्रभाव से सभी प्रकार की सिद्धि मुझे प्राप्त होगी ही। मुझे इसमें तनिक भी संदेह नहीं है...चूंकि देवों का वचन मिथ्या या झूठा नहीं होता है। परन्तु स्त्रीयाँ हमेशा अधीर होती हैं...। हमारा स्वभाव ही कुछ वैसा होता है। इसलिये आपके दिये हुए इस कटोरे की मैं परीक्षा करना चाहती हूँ! आपके समक्ष ही मैं परीक्षा करूँगी! जब तक परीक्षा पूरी न हो तब तक आप मेरे पति को नहीं मारोगे-ऐसा वचन मुझे दीजिए।' राक्षस ने कहा : 'ठीक है... तू परीक्षा कर ले, मैं तेरे पति को बाद में मारूँगा।' मदनमंजरी खुशी से नाच उठी। उसने दोनों हाथों में कटोरा रखा और भक्तिभाव पूर्वक नागराज धरणेन्द्र का स्मरण करके बोली - For Private And Personal Use Only

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