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मायावी रानी और कुमार मेघनाद
१५ को-अपने शिकार को सामने आया हुआ देखकर राक्षस खुशी से नाचने लगा! वह अपनी छोटी तलवार लेकर राजकुमार के ऊपर झपटा! इतने में... ___ 'ओ पापी... दुष्ट... मेरे पति को मत मार... मारना है तो मुझे मार...।' चिल्लाती हुई मदनमंजरी कुमार के समक्ष आकर खड़ी हो गयी। __ कुमार तो अचानक मदनमंजरी को वहाँ पर आई देखकर स्तब्ध रह गया । राक्षस भी पहले तो सहमकर चार कदम पीछे हट गया । पर मंजरी का साहस देखकर राक्षस प्रसन्न हो उठा। उसने पूछा : 'तू कौन है? और इस आदमी को बचाने के लिये यहाँ पर क्यों आई है? मदनमंजरी ने अपनी आवाज को धीमी करते हुए कहा : 'राक्षसराज, यह मेरे पति हैं... और प्रजा का पालन करनेवाले राजा हैं...। इन्हें छोड़ दो! और यदि आपको भक्ष्य ही चाहिए तो मेरे शरीर का भक्षण कर लो खुशी से!'
राक्षस ने कहा : 'यह हमारे राक्षसों का आचार नहीं है...। हम कभी किसी स्त्री की... बच्चों की और रोगी की हत्या नहीं करते हैं...। मैं तेरे शरीर का वध नहीं कर सकता!
मदनमंजरी ने कहा : 'आपका कहाना सच है। परन्तु यदि आप मेरे पति की हत्या करोगे तो पति विरह में मैं थोड़े ही जिन्दा रहँगी? मैं भी प्राणत्याग करूँगी ही! मेरे पति की मौत के साथ ही मेरी मौत भी निश्चित है।' और मदनमजंरी करुण क्रंदन करने लगी। फूट-फूट कर रोने लगी।
राक्षस का हृदय पसीजने लगा। उसे मदनमंजरी पर दया आ गई। वह अपने आसन पर से खड़ा हुआ। अपने मकान के भीतरी कमरे में जाकर एक रत्नों का बना हुआ कटोरा ले आया। वह कटोरा मंजरी को बता कर उसने कहा :
'ओ शीलवती, यह कटोरा मैं तुझे दे देता हूँ! यह कटोरा मुझे नागराज धरणेन्द्र ने स्वयं दिया था। इसके लिये मैंने बारह बरस तक उल्टा सिर लटकाये हुए जंगल में तपश्चर्या की है...। यह कटोरा मनचाही सभी चीजवस्तु देता है।' मदनमंजरी ने पूछा : 'यदि यह कटोरा सब कुछ देता है, तब फिर आप मेरे पति की हत्या क्यों करते हैं?'
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