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मायावी रानी और कुमार मेघनाद से लगा लिया। दोनों की आँखो में से हर्ष के आँसू मोती बन कर ढलक रहे थे। राजा कुमार को जी भरकर देख रहा है। पिता-पुत्र दोनों खड़े-खड़े वहीं पर देर तक बतियाते रहे। इधर रानी कमला ने बेटे को आशीर्वाद देकर अपनी बहू मदनमंजरी को अपने उत्संग में ले लिया। ___ अनेक प्रकार के वाद्य बज उठे। हजारों स्त्री-पुरुष जय-जयनाद करने लगे। कुमार के स्वागत यात्रा में नगर के हजारों नर-नारी सम्मिलित हुए थे। राजमार्ग पर स्वागतयात्रा घूमने लगी। कुमार और राजा एक रथ में बैठे थे। जबकि रानी कमला और मदनमंजरी दूसरे रथ में आरुढ़ हुए थे।
कुमार ने राजमार्ग पर देखा तो कई स्त्री-पुरुष राजा को अभिवादन करते हुए नगर के बाहर की तरफ जा रहे थे। कुमार ने राजा से पूछा : 'ये लोग अभी-इस वक्त नगर के बाहर कहाँ जा रहे हैं?' राजा ने कहा : 'बेटा, नगर के बाहर उद्यान में श्री धर्मघोषसूरिजी नाम के महान ज्ञानी और पवित्र आचार्य पधारे हुए हैं। अज्ञानरूप अंधकार को दूर करने के लिये वे सूर्य की भाँति तेजस्वी हैं | ऐसे गुरुदेव का सानिध्य तो महान भाग्योदय से ही मिलता है। लोग गुरुदेव के दर्शनार्थ जा रहे हैं।'
कुमार ने कहा : 'पिताजी, हम भी गुरुदेव के दर्शन करने के लिये चलें ।' 'वत्स, आज तो मैंने सारे नगर में तेरे व युवराज्ञी के आगमन की खुशहाली में महोत्सव का आयोजन किया है...अतः हम कल जायेंगे गुरुदेव के दर्शन करने के लिये।' ___'पिताजी, हम आज ही गुरुदेव को वंदन करने के लिये चलें। नगर में प्रवेश करते समय गुरुदेव के दर्शन होना यह तो परम मंगलकारी है। एक उत्सव में दूसरा उत्सव मिल जायेगा! दूध में शक्कर मिलेगी! साधु के दर्शन तो कल्याणकारी होते हैं... और फिर शुभ कार्य में देर क्या?' __महाराजा लक्ष्मीपति, कुमार की विवेकयुक्त मीठी वाणी सुनकर प्रसन्न हो उठे। उन्होंने शोभायात्रा को उद्यान की तरफ चलने की आज्ञा दी। उद्यान के बाहर रथ में से सभी नीचे उतरे और गुरुदेव श्री धर्मघोषसूरिजी के चरणों में पहुंचे।
सूर्य जैसे तेजस्वी!
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