Book Title: Mannaha Jinan Aanam Swadhyay
Author(s): Vijaykirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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३२६
कसिणकमलदललोअणंचलरेहन्तओ, पीपिहुल- थण- कडिअलभारकिलन्त । तालविलिरलयावलिकलयलसद्दओ, रासयंमि जइ लब्भइ जइ जुवईसत्थओ || संबुज्झ० ।। तओ [विक्खेवणी] विक्खित्ता...
असुइ-मुत्त-मल-पवाह-रुवयं, वंत- पित्त-वस-मज्ज-फोफसं । मेअ-मंस-बहु-हड-करंडयं, चम्ममित्तपच्छाइयजुवइ- अंगयं ।।
बुझ । तओ [संवेअणी] संविग्गा...
कमलचंदनालुप्पलकंति समाणयं, मूढएहि उवमिज्जइ जुवइ - अंगयं । rai पि भह तत्थ रसणिज्जयं,
असुईअं तु सव्वं चिअ ईअ पच्चक्खयं । । "
10
मन्नह जिणाण आणं' स्वाध्यायः
बुझ ।। ओ [ निव्वेअणी] निव्विन्ना...
11
जाणिऊण एअं चिअ असारए, असुइ-मित्तरमणूसवकयवावार ।
कामि मा गलसग्गह भवसयकारए,
विरम विरम मा हिंडह भवसंसारए ।।
बुझ ।।
१. ‘दुग्गंधिसहाविवरूवयं । मेअ - मज्ज-वस- पुप्फोस हडी करंकयं रम्ममित्त पच्छायण जुवई सत्थयं ।। हस्त० ।' 8. कृत्स्नकमलदललोचनांचलराजन्; पीनपृथुलस्तनकटीतलभारक्लान्तः ।
तालविलिरलतावलिकरतलशब्दकः, रासे यदि लभ्यते यदि युवतिसार्थकः ।। सम्बुध्यथ... ।
9. अशुचि - मूत्र - मल-प्रवाहरूपकं वान्त-पित्त - वसा- मज्जा - फोफसम् ।
मेद-मांस - बहुहडकरण्डकं चर्ममात्रप्रच्छादितं युवत्यङ्गम् ।।
10. कमलचन्दनोत्पलकान्तिसमानकं, मूढैरुपमियते युवत्यङ्गकम् ।
स्तोकमपि भणत तत्र रसनीयकं, अशुचिकं तु सर्वमेविति प्रत्यक्षकम् ।। सम्बुध्यथ... ।
11. ज्ञात्वा एतदेवासारके, अशुचिमात्ररमणोत्सवकृतव्यापार ।
काये मा गलासद्ग्रहं भवशतकारके, विरम विरम मा हिण्डत भवसंसारके ।। सम्बुध्यथ... ।
सम्बुध्यथ... ।

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