Book Title: Mahopnishad
Author(s): Vijaykalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 8
________________ महोपनिषद् પ્રસાદી અધ્યાત્મદર્શનાપ્રસાદી 1萬萬萬萬萬萬萬萬萬萬萬萬萬萬萬萬萬萬 को नाम जीवन्मुक्त्यनुभूत्यनुभूयमानपरमानन्दात् पराङ्मुखीभूयाऽऽभासमात्रपर्यवसितबाह्यसुखदुःखोप युक्तस्स्यादिति तदुपेक्षणमेव जीवन्मुक्तिलिङ्गम् // 2-43 // आसीनः, स्वभावातिरिक्तस्पृहाशून्यत्वात् // 2-47 // विषमप्रतिभासस्यैव वस्तुतः संसारात्मकतत्वात् // 2-54 // साम्यसिद्धिरेव सिद्धिः // 4-72 // एषैवाज्ञस्याज्ञता यत् परव्यतिकरे निजत्वारोपणेनात्मनो विह्वलीकरणम् // 4-130 // विचारोपरम एव विमुक्त्यारम्भ इति तात्पर्यम् // 5-5 // एवं सति पर्यायावेव नगरं गन्धर्वनगरमिति / स्वपुत्रो वन्ध्यापुत्र इति च // 5-167 // भ्रान्त्युत्थितस्य कथञ्चिदनुभूयमानत्वेऽपि परमार्थतो विभ्रमत्वानतिक्रमात् // 6-22 //

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