Book Title: Mahopnishad Author(s): Vijaykalyanbodhisuri Publisher: Jinshasan Aradhana Trust View full book textPage 7
________________ महोपनिषद् ઝલક મહોપનિષદ્ ઝલક आपतत्सु यथाकालं सुखदुःखेष्वनारतम् / न हृष्यति ग्लायति यः स जीवन्मुक्त उच्यते // 2-43 // यस्य स्त्री तस्य भोगेच्छा निःस्त्रीकस्य क्व भोगभूः ? / स्त्रियं त्यक्त्वा जगत् त्यक्तं जगत् त्यक्त्वा सुखी भवेत् // 3-48 // दृष्टदृश्यस्य सत्तान्तर्बन्ध इत्यभिधीयते / दृष्टा दृश्यवशाद् बद्धो दृश्याभावे विमुच्यते // 4-47, 48 // द्वे पदे बन्धमोक्षाय निर्ममेति ममेति च / ममेति बध्यते जन्तु-निर्ममेति विमुच्यते // 4-72 // हस्तं हस्तेन सम्पीड्य दन्तैर्दन्तान् विचूर्ण्य च / अङ्गान्यङ्गैरिवाक्रम्य जयेदादौ स्वकं मनः // 5-75 // सतोऽसत्ता स्थिता मूलि, रम्याणां मूय॑रम्यता / सुखानां मूनि दुःखानि, किमेकं संश्रयाम्यहम् ? // 6-24 //Page Navigation
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