________________
अध्यक्षीय
पुराणों में वरिणत सुरों और असुरों के युद्धों की लम्बी तालिका को यदि हम प्रतीक रूप में ग्रहण करें तो हमें मानना होगा कि वह मानव मनोगत भली और बुरी भावनाओं का संघर्ष था। भलाई और बुराई अंधकार और प्रकाश की तरह आपेक्षिक हैं। जिस तरह अंधकार का सद्भाव यह सूचित करता है कि प्रकाश की सत्ता है उसी प्रकार बुराई है इसका अर्थ है भलाई भी है। कोई भी समय ऐसा रहा हो कि इन युगलों में से किसी एक की सत्ता रही हो असंभव है। न वर्तमान में ऐसा है और न भविष्य में कभी ऐसा होना संभव है । हां, अवश्य ही ऐसा होता है कि जब इन दोनों में से एक की सत्ता या सद्भाव दूसरे की अपेक्षा अधिक हो। जैनों द्वारा वस्तु में अनेक विरोधी युगलों के होने को स्वीकार कर वस्तु या पदार्थ को अनेकान्तात्मक मानने के पीछे यह ही रहस्य है। इन यूगलों का संघर्ष अनादिकालीन है अतः बुराई पर भलाई की प्रतिष्ठा के प्रयत्न की अनादिकालीन हैं।
__ ये प्रयत्न दो प्रकार से हो सकते हैं। एक तरीका है बुराई को कम करने के लिए हम बुरा करने वाले के मन में यह भय पैदा करें कि यदि उसने अमुक कार्य किया तो उसे कठोर दण्ड मिलेगा तो भयभीत होकर वह, वह कार्य नहीं करेगा। आज विश्व में हथियारों की जो होड़ मची हुई है और एक से एक बढ़ कर विनाशक शस्त्रों का निर्माण करने के लिए प्रत्येक राष्ट्र अग्रसर हो रहा है उसके पीछे यह ही भावना है। मगर बुराई को दबाने का यह तरीका आदर्श नहीं हो सकता। जिस तरह पानी में औंधे पड़े हुए बर्तन को जब तक उस पर दबाव रहे तब तक ही पानी में डूबा रखा जा सकता है। दबाव हटते ही वह तत्काल ऊपर आ जाता है। ऐसे ही भय के हटते ही मानव की दबी हुई प्रासुरी प्रवृत्तियां उभर कर सामने आ जाती हैं और दोगुने वेग से अपना कार्य प्रारंभ कर देती हैं । प्रवुद्ध चिन्तकों ने इस सचाई को समझा और उन्होंने बुराई को दबाने की अपेक्षा उसे मूल से ही समाप्त कर देने के मार्ग को श्रेष्ठ घोषित कर लोगों को न केवल उस मार्ग पर चलने का उपदेश दिया अपितु, स्वयं उस पर चल पादर्श उपस्थित किया। भगवान आदिनाथ से लेकर भगवान् महावीर तक ने यह ही किया और यह ही सच्चा धर्म है धर्म का वास्तविक स्वरूप है।
आज फिर आसुरी प्रवृत्तियां सर उठा रही हैं और भय द्वारा उनको दबाने के प्रयत्न असफलताओं की कगार पर खड़े हैं। प्रतः विशेष रूप से भगवान् महावीर के आदर्शों और उपदेशों को विश्व तक पहुंचाने का गहनतम उत्तरदायित्व हम जैनों पर है। हमें यह कहते गौरवान्भूति है कि राजस्थान जैन सभा ने अपने इस उत्तरदायित्व को समझा है और वह गव १३ वर्षों से महावीर जयन्ती के पुण्यपर्व पर स्मारिका के रूप में एक ऐसे ग्रंथ का प्रकाशन करती आ रही है जिसमें भ० महावीर के जीवन, धर्म और उपदेशों के साथ-साथ जैनकला, साहित्य इतिहास, और पुरातत्व आदि विषयों से संबंधित सैकड़ों पृष्ठों की सामग्री रहती है। विद्वानों और जनता ने हमारे इस प्रयत्न का कैसा स्वागत किया है इसका प्रमाण है प्रति वर्ष हमें प्राप्त होने वाले सैंकड़ों पत्र जिनका प्रकाशन भी हम प्रात्म प्रशंसा के भय से और अधिक से अधिक सामग्री जनता के हाथों पहुंचाने की पवित्र भावना वश नहीं करते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org