________________
श्री गुरु गौतमस्वामी ]
[७६१
भगवान महावीर के संदेशवाहक
गणधर गुरु गौतमस्वामि
-पूज्य मुनिराज श्री ऋषभचन्द्रविजयजी महाराज गणधर गुरु गौतमस्वामि का जन्म ईसा से ६०७ वर्ष पूर्व मगधदेश, वर्तमान के बिहार प्रदेश स्थित नालन्दा के समीप गुव्वर नाम के गाँव में हुआ था। ब्राह्मण कुल के गौतम गोत्रीय वसुभूति की धर्मपली पृथ्वी माताकी कुक्षी से हुआ था। जन्म के समय ज्येष्ठा नक्षत्र था और बचपन का नाम इन्द्रभूति था। अग्निभूति और वायुभूति गौतमस्वामि के दो छोटे भाई थे।
चरम तीर्थंकर भगवान महावीरस्वामि के प्रथम शिष्य गणधर गुरु गौतमस्वामि की महिमा || अपरंपार है।
सर्वारिष्टप्रणाशाय, सर्वाभीष्टार्थदायिने।
सर्वलब्धिनिधानाय, गौतमस्वामिने नमः ।।
समग्र अरिष्ट-अनिष्टों के प्रणाशक, समस्त मनोकामनाओं के पूरक, सकल लब्धि और | सिद्धियोंके भण्डार गुरु गौतम को नमस्कार।
जैन परंपरा में गौतमस्वामि का नामश्रवण मंगलकारी माना गया है। जिस तरह से हिन्दू परंपरा में 'श्री गणेशाय नमः'—गणेशका नाम महामंगलकारी मान कर पहले लिखा जाता है—उसी तरह जैन परंपरा में दीपावली के दिन चौपडा पूजन कर सर्वप्रथम पृष्ठ पर लिखा जाता है—"श्री गौतमस्वामि महाराज की लब्धि होजो।" यह लिखकर अपनी भावि समृद्धि एवं सफलता की कामना करते हैं। दीपावली की नूतन वर्ष प्रभात वेला में गुरु गौतमस्वामि के गौतमरास का श्रवण कर जैन श्रावक अपने नूतन वर्ष को महामंगलकारी सफलतादायी बनाते हैं।
इन्द्रभूति गौतमस्वामि की ७ हाथ ऊँचाई वाली सुन्दर वज्रऋषभनाराचयुक्त गौरवर्णी दृढ़ काया थी। गौतमस्वामि ने ईसा से ५५७ वर्ष पूर्व वैशाख सुदि ११ के दिन ५० वर्ष की उम्र में भगवान महावीरस्वामि से दीक्षा ग्रहण की थी।
चिच्चाण घणं च भारियं पव्वइओ हि सि अणगारियं । मा वन्ते पुणो वि आइए समयं गोयम! मा पमायए॥
(उत्तराध्ययन सूत्र, अध्याय : १०, गाथा : २६) अर्थात्-धन और पत्नी का परित्याग कर तू अनगार वृत्तिमें दीक्षित हुआ है। अतः