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श्री गुरु गौतमस्वामी ]
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विराट चेतनाके महापुरुष
गुरु गौतमस्वामी
-भंवरलालजी न्हाटा भगवान महावीर सर्वज्ञ हुए। कैवल्य सम्पदा पाकर, सम्पूर्ण केवळी बन कर आप कृतकृत्य हुए। उसी समय इन्द्रासन कम्पित हुआ। इन्द्रों ने आ करके अपनी दर्शन विशुद्धि के हेतु भगवान को भगवान रूप में साक्षात् भावनिक्षेप में पा कर और उनकी भक्ति के रूप समोसरण की रचना की। बहुत से सज्जन मिले धर्मदेशना सुनने के लिए, स्वाभाविक रूप में भगवान ने धर्मदेशना दी। इतने साल का मौन अब पूर्ण हुआ। कार्य संपन्न हुआ, इस लिए वह स्वाभाविक रूप में वाणी
अपना काम कर रही है पर यह काल की महिमा है कि भगवान के उस उपदेश को सुनकर कोई | आत्मा जागृत न हुई। अच्छेरे रूप में देशना निष्फल गई जो आश्चर्य रूप में बात मानी गई है। वहाँ से रात्री को ही गमन करके बारह योजन चल कर मध्यम अपापानगरी में आप पधारे हैं; उदयानुसार इच्छारहित ऐसे जीवों के पुण्य के कारण कि जहाँ पर वह मिलन होने वाला है। आप का गमन हुआ, बारह योजन (४८ कोश)। शक्ति थी, सब कुछ था। .
वहाँ सोमिल नामका ब्राह्मण यज्ञारंभ करके और बड़े बड़े दिग्गज विद्वानों को बुलाया था। लाखों आदमी जमा हुए थे। स्वर्ग की इच्छा के हेतु यज्ञक्रिया करवाने की प्रथा उस वक्त बहुत बढ चुकी थी। उस में जो मुख्य मुख्य वेदपाठी विद्वान प्रोफेसर जैसे ग्यारह थे उनके नाम इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति, व्यक्त, सुधर्मा, मण्डित, मौरिपुत्र, अकम्पित, अचलभ्राता, मेतार्य, प्रभास-ये इनके नाम हैं और
के विद्यार्थीगण भी सम्मिलित हैं साथ में। प्रथम पांच के पांचसौ-पांचसौ. फिर दो के साढे तीन सौ. फिर चार के तीन सौ-उनके शिष्यरूप में वेदपाठ के अभ्यासी प्रत्येक के साथमें थे। मिल कर ४४०० की संख्या। इतने छात्रबलके साथ वे आये हुए हैं और यज्ञक्रिया के लिए सब तैयारी हो रही है। ये सब अपने आप को सर्वज्ञ मानते हैं। अपने हृदय में शंकाएँ हैं। किसी के सामने व्यक्त नहीं करते और स्वयं भी समाधान नहीं कर पाते। इस लिए भीतर का आवरण ज्यों का त्यों कायम रहता है। उनमें क्रमशः मुख्य मुख्य यह संदेह था :
जीव है या नहीं है, यह इन्द्रभूति के हृदयमें शल्य था। जीव के अस्तित्व का उनको | प्रतीति भाव पकड़ में नहीं आता था।
दूसरे को कर्म है या नहीं है। कर्मसत्ता के विषय में उनको बड़ा भारी संदेह था।
तीसरे को जीव और शरीर दोनों भिन्न कैसे हैं ? एक ही होना संभव है। अलग नहीं हो सकते। ऐसा ऐसा उनके हृदय में शल्य था।
किसी को पांच भूतों की सत्ता है या नहीं है, क्यों कि अद्वैत सिद्धान्त एके प्रवाल एक परगम्य || के सिवा कुछ भी नहीं है। यदि कुछ भी नहीं है तो यह पंच भूत कैसै हैं, यह शंका थी।