Book Title: Mahamani Chintamani Shree Guru Gautamswami
Author(s): Nandlal Devluk
Publisher: Arihant Prakashan

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Page 831
________________ श्री गुरु गौतमस्वामी ] [ ८३५ में पारंगत था, उसके मन में कुछ शंकाएं थीं। उसने जब सुना कि श्रमण महावीर के उपदेश से सब संशय विनष्ट हो जाते हैं, तो वह भी उनके समवसरण की ओर चल पड़ा। भगवान महावीर ने गौतम से कहा कि आज तुम अपने पूर्वजन्म के मित्र से मिलोगे। वह यहाँ आ रहा है। उसी समय स्कंदक आता हुआ दिखाई दिया। गौतम श्रमण परम्परा के प्रतिनिधि थे और स्कंदक परिव्राजक परम्परा का एक विद्वान, फिर भी सामान्य शिष्टाचार और स्वागत-सत्कार की विधि के अनुसार भगवान के पास से उठे, दस-बीस कदम आगे बढ़े और शिष्ट, सभ्य और मधुर वाणी में उनका स्वागत किया। गौतम के इस प्रकार के निश्छल एवं सम्मानभरे वचनों को सुनकर परिव्राजक स्कंदक पुलकित हो उठा और प्रसन्न भाव से गौतम के साथ भगवान के चरणों में वंदन किया । | स्कन्दक ने प्रभु से अपनी शंकाओं का समाधान पाया, सम्यग्दृष्टि प्राप्त हुई, वह प्रभु के चरणों में समर्पित हो गया । भगवान के द्वार पर गौतम द्वारा स्कंदक का स्वागत और सम्मान जैन शिष्टाचार की एक महत्त्वपूर्ण घटना है। अन्य परम्पराओं के भिक्षुओं के साथ इस प्रकार के मधुर एवं शिष्टाचारपूर्ण व्यवहार के उदाहरण आज नई सभ्यता के युग में भी हमें उच्च व्यावहारिक दृष्टि प्रदान करते हैं । अनन्य प्रभुभक्ति- एक समय शाल - महाशाल राजर्षियों ने भगवान महावीर से गांगलि नरेश को प्रतिबोध देने की आज्ञा माँगी। भगवान महावीर ने गौतमस्वामी के साथ उन्हें भेजा । गौतमस्वामी के उपदेश से प्रभावित होकर राजा गांगलि ने राज्य अपने राजकुमार को देकर स्वयं प्रव्रजित हो गये। उनके साथ उनके पिता पिटर एवं माता यशोमती ने भी दीक्षा ग्रहण की। गौतमस्वामी ने अपने पाँचों शिष्यों सहित चंपा की ओर विहार किया, जहाँ भगवान महावीर विराजमान थे। रात्रि में पाँचों शिष्यों को केवलज्ञान हो गया, परन्तु गौतमस्वामी को इसका पता नहीं चला। जब वे भगवान के समवसरण में पहुँचे तो वे पाँचों शिष्य केवली परिषद की ओर जाने लगे तो गौतमस्वामी ने उन्हें रोका। इस पर भगवानने कहा - " गौतम ! मुनियों का आचरण | ठीक है, वे केवलज्ञानी हो गये। तुम केवली की आशातना मत करो" । भगवान की वाणी सुनकर गौतम को आश्चर्य हुआ। साथ अपनी छद्मस्थता पर उन्हें खेद भी हुआ कि मेरे शिष्य तो सर्वज्ञ हो गये और मैं अभी तक छद्मस्थ ही बना रहा । मुक्ति का आश्वासन - इस घटना से गौतम को बड़ी खिन्नता हुई और वे आत्मनिरीक्षण करने लगे होंगे कि आखिर मेरी साधना में क्या कमी है ? मेरे अध्यात्मयोग में कौन सी रुकावट आ रही है जिसे तोड़ सकने में मैं अब तक असमर्थ रहा हूँ। तब भगवान ने अपने प्रिय शिष्य की खिन्नता एवं मनोव्यथा को दूर करने के लिये सान्त्वनाके वचन कहे, वह भगवती सूत्र में इस प्रकार अंकित हैं- “ गौतम ! तुम अतीत काल से मेरे साथ स्नेहसंबंध में बंधे हो, तुम जन्म जन्म से मेरी प्रशंसा कर रहे हो, पिछले देव भव में एवं मनुष्य भव में भी तुम मेरे साथी रहे हो । इस प्रकार अपना स्नेहबंधन दीर्घकालीन है। मैंने तो उसे तोड़ दिया है, पर तुम नहीं तोड़ पाये । पर याद रक्खो, तुम भी अति शीघ्र बंधन मुक्त होकर मेरे समान सिद्ध, बुद्ध, मुक्त बनोगे । गौतमस्वामी की सारी खिन्नता दूर हो गयी और वे प्रसन्नता से झूमने लगे । गौतम को कैवल्य - कार्तिक अमावस्या का दिन करीब आया । भगवान महावीर ने अपने

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