Book Title: Mahamani Chintamani Shree Guru Gautamswami
Author(s): Nandlal Devluk
Publisher: Arihant Prakashan

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Page 832
________________ ८३६ ] [ महामणि चिंतामणि अंतिम समय में सोचा कि गौतम को मुझसे अत्यन्त अनुराग है, और इसी कारण वह मृत्यु के समय अधिक शोकातुर न हो, और दूर रहकर अनुराग के बंधन को तोड़ सके, अतः देवशर्मा नामक ब्राह्मण को प्रतिबोध देने के लिए अन्यत्र भेज दिया। अमावस्या की रात्रि को भगवान का परिनिर्वाण हो गया। गौतमस्वामी को इस का पता चला तो एकदम मोहविह्वल हो गये और हृदय पर वज्राघात सा लगा। वे विलाप करने लगे । परंतु शीघ्र ही उन्होंने अपने आप को सम्भाला और विचार करने लगे कि -अरे! यह मेरा मोह कैसा ? वीतराग के साथ मोह कैसा ? वे तो रागमुक्त होकर मोक्ष पधार गये। अब मुझे भी राग छोड़ना चाहिए और अपनी आत्मा का विचार करना चाहिए। वही मेरा परम साथी है, बाकी सब बंधन है। इस प्रकार आत्मचिंतन की उच्चतम दशा पर आरोहण करते हुए गौतमस्वामी ने अपने राग क्षीण किये और उसी रात्रि के उत्तरार्ध में केवलज्ञान प्राप्त किया । भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात् संघ के नेता का पल आया गणधर गौतम के हाथों में संघ का नेतृत्व आता, किन्तु गौतम उसी रात्रि को सर्वज्ञ हो गये थे । अतः प्रश्न यह आया कि सर्वज्ञ की परम्परा चलाने के लिए सर्वज्ञ का उत्तराधिकारी छद्मस्थ होना चाहिए न कि सर्वज्ञ। इस दृष्टि से भगवान महावीर के उत्तराधिकारी गणधर सुधर्मास्वामी हुए । गौतमस्वामी ने केवलज्ञान प्राप्त कर बारह वर्ष तक सतत उपदेश दिया। अंतिम समय में वे राजगृही में एक मास का अनशन करके सिद्ध-बुद्ध मुक्त हो गये । · (शाश्वत धर्म अक्टु. - नवम्बर १६८५ में से साभार) * *

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