Book Title: Mahamani Chintamani Shree Guru Gautamswami
Author(s): Nandlal Devluk
Publisher: Arihant Prakashan

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Page 813
________________ श्री गुरु गौतमस्वामी ] [ ८१७ बालवय में भगवान के पास लाकर दीक्षा दिलवाने का वर्णन है। पानी में कागज़ की नाव द्वारा खेलने पर, स्थविर के पूछने पर, भगवान द्वारा अइमुत्ता की आशातना न करने, व उसके तद्भव मोक्षगामी होने का उल्लेख है । (१०) शतक - १८ में सोमिल ब्राह्मण (इन्द्रभूति गौतम के विराट यज्ञ का आयोजक ), और भगवान महावीर के रोचक संवाद हैं। भगवान वाणिज्यग्राम के द्युतिपलाश उद्यान में विराजमान हैं। समवसरण में सोमिल के आगमन के पूर्व भगवान गौतम से कहते हैं - " गौतम ! आज तुम्हारा पूर्वपरिचित सोमिल ब्राह्मण यहाँ आने वाला है। उसका स्वागत करो ।” सोमिल के आगमन पर गौतम आगे बढ़कर, बाँह फैलाकर उसका स्वागत करते हैं- " आइये आर्य सोमिल! आपका स्वागत है, अनुस्वागत है, सुस्वागत है ।" सोमिल भावविह्वल हो उठता है। भगवान को विनय से पूछता है- "भंते! आपकी यात्रा कैसी है ?" ( " सोमिल ! तप, नियम, संयम, स्वाध्याय, ध्यान और आवश्यक आदि योगों में मेरी यतना ( प्रवृत्ति ) है । वही मेरी यात्रा है । " - श. १८-१०-१८) “सोमिल ! मैं द्रव्यरूप से एक हूँ । ज्ञान और दर्शन की दृष्टि से दो हूँ । आत्मप्रदेशों की अपेक्षा से मैं अक्षय हूँ, अव्यय हूँ, अवस्थित (नित्य) हूँ, उपयोग की दृष्टि से अनेक भूत-भाव-भविक (भूत और भविष्य के विविध परिणामों के योग्य) भी हूँ।” (श. १८-१०-२७) -आदि समाधानों से संतुष्ट होकर सोमिल श्रावक के १२ व्रत ग्रहण करता है। उसके जाने के पश्चात् गौतम द्वारा पूछने पर भगवान कहते हैं- "सोमिल भविष्य में दीक्षित होकर मोक्षलाभ करेगा ।" (2) राजगृही में पार्श्वापत्य अणगारों से गौतम का संवाद होता है। जिसके उत्तर वे जो देते हैं, गौतम के प्रश्न पर भगवान महावीर पार्श्वापत्य मुनियों के उत्तर का पूर्णरूपेण न करते हैं । (१२) शतक १४-७- गौतम को शंका उत्पन्न होती है की चिरकाल से प्रभु के संन्निकट रहने पर भी उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। भगवान महावीर अपने प्रिय शिष्य गौतम को सान्त्वना देते हैं- “गौतम ! चिरकाल से तू मेरे स्नेह से बंधा हुआ है। मेरी प्रशंसा, सेवा, परिचय, अनुसरण, चिरकाल से करता रहा है। गौतम ! अधीर न बन ! यहाँ से आयु पूर्ण कर एक साथ शाश्वतधाम-मोक्ष में निवास करेंगे।" ૧૦૩ सुनकर गौतम परम संतुष्ट एवं आह्लादित हुए - कृतज्ञ हुए । नोट- - [ उत्तराध्ययन- अ. १० 'द्रुमपत्रक' में भी यह वर्णन है । ] * * भगवतीसूत्र की तरह सूत्रकृतांग, जीवाभिगम सूत्र तथा उत्तराध्ययन सूत्र में भी गौतमस्वामी महत्त्वपूर्ण चर्चा है :

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