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[ महामणि चिंतामणि
अध्यात्मामृत से अपनी मनीषा को भरा और हमारे लिए अगाध आगमज्ञान की राशि को सुरक्षित रखा। विकास की समस्त संभावनाओं से संवलित रखकर नेतृत्व प्रदान करने वाले गौतम एक ऐसे संविधान निर्माता थे जिनके द्वारा खींची गई लकीरें धर्मसंघ के लिये अटल प्रहरी बनकर खड़ी हैं। गौतमस्वामी ने सत्य को व्यापक संदर्भ में देखा, और धर्म को सम्प्रदाय की सीमा से मुक्त किया। प्रभु के प्रति उनका निश्छल समर्पण और सत्य को पाने की अभीप्सा ने उनकी कृतियों में एक अनाग्रही और ऋजु दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति दी। महावीर के धर्म की आत्मा आचार्यदेव गौतमस्वामी के माध्यम से बहुत शक्तिशाली रूप में प्रगट हुईं। गौतमस्वामी की दूरदर्शी मनीषा युग-युग तक अपनी विलक्षणता का आभास कराती रहेगी। ऐसा सक्षम अद्भुत अध्यात्मिक नेतृत्व सैंकडो-हजारों वर्षों के अन्तराल में कभी-कभी मिल पाता है। आज जिनवाणी परिचायक गौतमदेव के निर्वाण की २५००वी जयंती मनाते हुए हम अध्यात्म के मूल को सतत चिंतन देकर हज़ारों हज़ारों वर्षों तक फलीभूत रहने योग्य बनाने वाले इस महान योगी के प्रति अपनी आस्था का, समर्पण का, कृतार्थता का अनुभव करते है। एक बार फिर हम अन्तःकरण की समग्र श्रद्धा से उन्हें अपने प्रणाम समर्पित करते हैं।
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गणधर श्री गौतम स्वामी महाराज को अनंद मंदना । मोकार महामन्त्राधिन , मवादपि जाना में करणी निरंतर कोमलपणा में शाम तरे। रसवयी तस्वनयी । अतीकिक म मनोहार ।। श्री जिनशामन की शान है मुक्तिनिलय की मिशाल । गौतम नाम में । सुधि गावे शीघ्र अति समद्धि ।।। तन मन ननन को दिर का नित्य जो नवकार । महान मानव जन्म पाकर सांप बनना , निराकार ।। स्वामी सेवक का सम्बन्ध । अनादि और अनन्त ।। मात ध्यान रखी एक बात जिनधर्म चलेगा ही साथ । भगवान श्री महावीरदेव के अनन्य विनयी ये परमशिष्य । गणधर पदवी महान, विपदी रचना से बने अमर। वाणी बिनय विवेक विचार वीतरागता में जयजयकार ।। नवकार से भवणार. मी जितेपर देख एक आधार । काट जन्म के पुण्य से मिलता है। मनुष्य अवतार । न राण- प म बलश न फकाश, यही मोक्ष जावास । मन को जो माध लेता है वो होता शीघ्र भव से मुक्त । नमन ही वीर प्रम को दीपावली की महान संध्या में। । गौतमत्वामी जैसा विनय मुक्तिप्रेम' के जीवन में ।।