Book Title: Mahamani Chintamani Shree Guru Gautamswami
Author(s): Nandlal Devluk
Publisher: Arihant Prakashan

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Page 811
________________ श्री गुरु गौतमस्वामी ] [८१५ लिए यथोचित प्रायश्चित्त-प्रतिक्रमण, (आत्म) निंदा, गर्हा, निवृत्ति, अकरणता विशुद्धि, एवं तदनुरूप तपः क्रिया स्वीकार करने चाहिए या आनन्द श्रावक को?' भगवान ने उत्तर दिया-“गौतम! आनन्द सच्चा है। उसे उसके कथनानुसार अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ है। तुम जाओ, और आनन्द से क्षमा माँगकर आओ।" "तहत्ति!" कहकर गौतम द्रुतगति से आनन्द के घर जाते हैं, और अत्यंत नम्रता व प्रायश्चित्त पूर्वक 'मिच्छा मि दुक्कडं' देते हैं। आनंद गद्गद् हो जाता है। यह थी गौतम की महानता और निष्कलुषता। एक मात्र महावीर के प्रति भक्तिराग-स्नेहराग के अतिरिक्त उनकी महान आत्मा निर्मल एवं पारदर्शी स्फटिक की तरह पवित्र थी। wesomeonommonsoomsoommo00000000000000000 गणधर गौतमस्वामी सूर्य की किरणों के बल श्री अष्टापद तीर्थ पर चढ़ते हैं, और चोवीसों जिनवरों की 'जगचिंतामणि' चैत्यवन्दन से वन्दना कर सूर्य की किरणों से ही नीचे उतरते हैं। नीचे कुछ तापस (अनुश्रुति १५०३ तापसों की है) ध्यान व तपस्या कर रहे हैं, कि तपोबल से अष्टापद तीर्थ के दर्शन कर लें। कोई पहली, कोई दूसरी, कोई तीसरी सीढ़ी तक चढ़ सका है। श्री अष्टापद तीर्थ के लिए एक से एक आठ ऊँची सीढियाँ कैलाशपर्वत पर बनी हुई हैं। गौतमस्वामी को सूर्य की किरणों के सहारे उतरते देखकर तापसों को महान् आश्चर्य होता है। वे सब गौतम की शरण में आते हैं। दीक्षा ली। पारणा कराते गौतम ने कहा : "भिक्षुओ! चलो, मांडले में बैठो, पारणा कर लो।" तापस आश्चर्यचकित, चित्रलखे-से गौतम को (हाथ जोड़कर) निहारने लगते हैं। गौतमस्वामी का अंगूठा पात्र में है। क्षीरास्रव लब्धि के प्रताप से सर्व तापस भरपेट आहार करते हैं। क्षीर से तो पात्र अब भी लबालब भरा है। कितना आश्चर्य है! ५०१ को पारणा करते समय, ५०१ को राह में, और शेष ५०१ को भगवान के समवसरण तक पहुँचते-पहुँचते केवलज्ञान की उत्पत्ति होती है, और समस्त भिक्षु केवली-पर्षदा में जाकर बैठने लगते हैं। गौतम उन्हें रोकते हैं - "भिक्षुओ! इधर बैठो, वह तो केवली-पर्षदा है।' भगवान गौतम से कहते हैं-"गौतम ! केवली की आशातना मत करो। वे सब केवली हो चुके हैं।" गौतम उठकर भावपूर्वक अपने ही केवली शिष्यों की वंदना करते हैं। गौतमस्वामी के करकमलों से जितने भी व्यक्ति दीक्षित हुए, उनमें प्रत्येक केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्षगामी बना। यह उनका अतिशय था। कहावत प्रसिद्ध है : 'अंगूठे अमृत वसे, लब्धि तणो भण्डार । श्री गुरु गौतम समरिए वांछित फल दातार ॥ श्री भगवती (व्याख्याप्रज्ञप्ति) सूत्र गौतमस्वामी और भगवान महावीर के संवादों से भरा पड़ा है। गौतम लोकहितार्थ प्रश्न पूछते हैं और भगवान तत्त्व के रहस्यों को उद्घाटित कर मोक्ष

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