________________
८२४ ]
[ महामणि चिंतामणि
एक नहीं, कई उदाहरण हैं। ऐसी स्थिति में गौतमस्वामी गुरुवर की ऋद्धि के भंडार में भावात्मक स्थापना ऋद्धिदायक बने इस में किसी प्रकार का संशय नहीं है। इसके लिये भक्त की भावशुद्धि आवश्यक है।
गौतमस्वामी ने गणधर की पदवी प्राप्ति की, कारण उन में उस योग्यता के गुण थे। उनके अपने पुरुषार्थ से ज्ञानावरणीय कर्मों को इतना क्षीण कर दिया था कि इन में औत्पातिकी बुद्धि, जो मतिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होती है-अर्थात् बहुत विचार व परिश्रम किये बिना सहज स्वभावतः तत्क्षण प्रकट होने वाली प्रत्युन्नमति, आत्मसात् थी। अरिहंत परमात्मा द्वारा समवसरण में बताये गये तीन मातृका : (१) उप्पन्नेइ वा (२) विगमेइ वा (३) धुवेइ वा से सारे तत्त्वज्ञान का प्रकाश हो गया था। इससे जीव-अजीव इत्यादि सात तत्त्व और पुण्य-पाप सहित नौ तत्त्वों में माविष्ट होने वाले समस्त पदार्थो दर्शन-ज्ञान हो गया तथा उसी पर से द्वादशांगी की रचना का
हम बहुत भाग्यशाली हैं कि हमें तीर्थकर भगवन्त महावीरस्वामी द्वारा प्रकट की गई तथा गणधर सुधर्मास्वामीजी द्वारा रचित द्वादशांगी के ज्ञान का लाभ मिल रहा है। द्वादशांगी का ज्ञान हमें मार्गानुसारी जीवन जीने की कला सिखाता है, श्रमण-श्रमणी बनने को प्रेरित करता है और उस मार्ग पर चलकर मोक्ष-प्राप्ति में सहायक होता है।
ऐसे अनन्तलब्धिनिधान, द्वादशांगी के रचयिता, अनन्त अव्याबाध अक्षय मोक्षसुख को भोगने वाले तथा जिनके नाम का प्रातःकाल स्मरण करने से मनवांछित कार्य पूरे होते हैं ऐसे गुरु भगवन्त गौतमस्वामीजी को शत शत वन्दन ।
RRRR88888888886
88888888888888
ACK
9
JAN
नननननननननन