________________
८०६]
[ महामणि चिंतामणि
momooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooo
इन्द्रभूति गौतम : जीवन, संयम एवं सिद्धि
-श्री चांदमल कर्नावट भगवान महावीर के बाद एक अनन्य श्रद्धाकेन्द्र :
__ भगवान महावीर के बाद ढाई हज़ार वर्षों के दीर्घ इतिहास में कोई अन्यतम नाम और श्रद्धेय व्यक्तित्व है तो वह है इन्द्रभूति गौतम | जनसाधारण की श्रद्धा गणधर गौतम के प्रति निम्न शब्दों में व्यक्त हुई है :
अंगूठे अमृत वसे लब्धि तणा भंडार ।
श्री गुरु गौतम सुमरिये, वांछित फल दातारं ।। विनय की प्रतिमूर्ति और अद्भुत जिज्ञासु इन्द्रभूति गौतम का जीवन एक महानतम आदर्श और अभिव्यक्ति है। व्यक्तित्व के उच्च गुणों के अक्षय भंडार, अपार ज्ञान के पारावार गौतमस्वामी चारित्र की ऊँचाइयों पर भी आरूढ़ हो चुके थे। भगवती, समवायांग, उपासकंदशास्त्र, कल्पसूत्र एवं आवश्यक नियुक्ति आदि आगमों, नियुक्तियों एवं कृतियों तथा टीकाओं में उनके जीवन के विषय में कुछ ही संकेत मिलते हैं। भगवतीसूत्र-शतक में उनके दिव्य गुणों की एक झाँकी प्राप्त होती है -"श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति गौतम अणगार उग्र तप, दिव्य तप और महातप के धारक थे। घोर गुणी और घोर ब्रह्मचारी थे। शरीर से ममतारहित, तप की साधना से प्राप्त तेजोलेश्या को गुप्त रखने वाले, ज्ञान की अपेक्षा में चतुर्दश पूर्वधारी एवं चार
धारक थे। वे सर्वाक्षर सन्निपात जैसी विविध लब्धियों के धारक एवं महान तेजस्वी थे। वे भगवान महावीर से न अति दूर व न अति समीप ऊर्ध्वजानु और अधोसिर होकर बैठते थे। सब ओर से अपने ध्यान को केवल प्रभु के चरणारविन्द में केन्द्रित किये हुए संयम और तप से | अपनी आत्मा को अर्पित करते हुए विचरते थे।"
भव्य आकृति के साथ प्रकृति की भव्यता से मंडित था उनका व्यक्तित्व। वे घोर ब्रह्मचारी | होने के साथ थे घोर तपस्वी। उपासक दशांगसूत्र के उल्लेखानुसार श्रमणदीक्षा के बाद से ही वे आजीवन छट्ठ अर्थात् दो दो उपवास का निरन्तर घोर तपश्चरण करते हुए विचरते थे। भारतीय संस्कृति का समग्र स्वरूप :
श्री गणेशमुनि शास्त्री कृत 'इन्द्रभूति गौतम : एक अनुशीलन' के प्रारंभ में आशीर्वचन के || अंतर्गत उपाध्याय अमरमुनि का यह उल्लेख उद्धरणीय है।
___ "श्रुत महासागर की असीम-अतल गहराई में पैठकर भी सत्य की उत्कट जिज्ञासा, विचारों का अनाग्रह तथा हृदय की विनम्रता, मधुरता एवं सरलता का विलक्षण संगम इन्द्रभूति
-