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श्री गुरु गौतमस्वामी ]
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गौतमस्वामी का महावीर प्रभु के प्रति अतिराग यह करुण कल्पांत करा रहा था। एक मर्तबा भगवान महावीर ने भी कहा था कि
"गौतम ! जब तेरा मेरे ऊपर से राग टूटेगा, तब तुझे केवलज्ञान प्राप्त होगा।" परतु जगतोद्धारक प्रभु से प्रीति कैसे छूटे ? गौतमस्वामी का विलाप अविरत जारी रहा।
"हे प्रभु! आपने इस प्रकार क्यों किया? क्या मैं आप से कुछ भाग माँग लेता? अथवा बालसुलभ चेष्टा द्वारा आपके पीछे लगता ? अथवा मेरे आने से सिद्ध शिला पर जगह की कमी हो जाती ? जिससे मुझे अकेला छोडकर चले गये? हे वीर! अब मैं कहाँ जाऊँ ? क्या करूँ ? | अपने दुःखों की व्यथा किसे सुनाऊँ ? हे वीर...वीर... वी...र...वी...र...!"
जल बिन मछली की तरह गौतम तड़फने लगे। परंतु वीरं....वीर...का रटण करते-करते उनके मुँह पर सिर्फ 'वी' शब्द रह गया। उन्हें आत्मज्ञान हुआ। 'वी' शब्द से उन्हें 'वीतराग' भाव का बोध हुआ। __. “अरे! वीर तो वीतरागी थे। उन्हें मुझ पर राग नहीं था। मैं ही मोहग्रस्त रहा कि अपने श्रुतज्ञान का उपयोग नहीं किया।" • भाव-भक्ति का करुण आक्रंद रुक गया। ज्ञानदृष्टि जागृत हो गई। अन्तर की आँखें उजागर हो गईं। राग अवस्था के नागपाश छूटने लगे। गौतमस्वामी के दिल में एकत्व भाव का उदय हुआ।
“मैं अकेला हूँ। मेरा कोई नहीं है।" इस प्रकार उच्च विचारश्रेणि में चढ़ते-चढ़ते गौतमस्वामी को उसी क्षण केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त हुआ। गणधर गौतम सर्वज्ञ-केवली अहँ बने ।
प्रतिपदा के दिन पुनः सारी पृथ्वी पर खुश-खुशहाली फैल गई। देवेन्द्रों ने केवलज्ञान के उपलक्ष्य में महोत्सव मनाया।
गणधर गौतमस्वामी लब्धि के भंडार थे। उनकी महिमा का पारावार नहीं था। गौतम शब्द का पहला अक्षर 'गौ' का अर्थ है गाय, जो कामधेनु का प्रतीक है। दूसरा अक्षर 'त' का अर्थ है तरु, जो कल्पतरु का प्रतीक है। तीसरा अक्षर 'म' का अर्थ है मणि, जो चिन्तामणि का प्रतीक है।
. नूतन वर्ष की खिलती उषा और बहती हवा सभी के लिए कल्याणकारी बनें। भगवान गौतमस्वामी की वरद कृपा बरसती रहे, प्राणीमात्र अहं का त्याग कर अहँ पद को प्राप्त करें।
(आगमोद्धारक हिन्दी सामयिक, ओक्टू० १६६२ अंकसे)
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