Book Title: Madhya Asia aur Punjab me Jain Dharm Author(s): Hiralal Duggad Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir DelhiPage 23
________________ (18) विषय २६१ पत्र ३४४ १० सं० | विषय पृ० सं० (२) सिकन्दर महान के समय में २. लुका तथा ढूढिया (स्थानकवासी) पंजाब में जैनधर्म २६० मत ३३४ (३) चन्द्रगुप्त मौर्य और जैनधर्म २६१ ३. स्थानकवासी मत से निकला तेरापंथ (४) चन्द्रगुप्त मौर्य का अंतिम । मत ३४० समय ४. पंजाब में यति-श्रीपूज्य ३४१ (५) मंत्री चाणक्य और जैनधर्म २७० (१) उत्तरार्ध लौकागच्छ के यति ३४२ (६) बिन्दुसार मौर्य २७० (२) यति विमलचन्द्र को श्रीपूज्य (७) अशोक मौर्य महान् २७१ पदवी प्रदान ३४२ (८) मशोक का पुत्र-कुणाल मौर्य २७१ (३) यति विमलचन्द्र के नाम () परमार्हत सम्राट संप्रति मौर्य २७१ मेघराज ऋषि का क्षमापणा (१०) युद्धवीर और धर्मवीर ३४४ महामात्य वस्तुपाल तेजपाल २७७ (४) यति रामचन्द्र को श्रीपूज्य २: मुगल साम्राज्य और जैनधर्म २८२ पदवी प्रदान (१) चमत्कारी श्री भावदेव सूरि २८२ (५) पारकर (सिंध) देश में श्री (२) मुगल सम्राटों पर जैनधर्म गौड़ी पार्श्वनाथ की स्तुति का प्रभाव २८६ (३) जगद्गुरु श्री हीरविजय सूरि व स्तवन ३४६ तथा मुनिसंघ (६) श्रीपूज्य विमलचन्द्र तथा २८६ (४) खरतरगच्छीय प्राचार्य श्री रामचन्द्र की पट्टावली का पट्टावला ३४८ (७) सामाणा में यतियों के उपाश्रय जिनचन्द्र सूरि की अकबर से प्रादि भेंट ३४८ २६१ (८) फरीदकोट में यतियों की गद्दी (५) मुगल सम्राटों पर जैनमुनियों तथा श्वेतांवर जैन मंदिर ३४६ के सम्पर्क का प्रभाव २६१ (8) रूपनगर (रोपड़) में यति (६) अकबर द्वारा जैन मुनियों को गद्दी ३५० पदवियाँ प्रदान (१०) मुलतान में यतियों की (७) अकबर की श्रद्धा ३०४ गद्दियां ३५० (८) मुगल सम्राटों के चार फरमान ३११ (११) भटनेर (हनुमानगढ़) में (8) तीन मुगल सम्राट व तीन यतियों की गद्दियां जैनाचार्य ३५० ३१७ ३. महाराणा प्रतापसिंह और हीर अध्याय ५ जैनमंदिर, संस्थाएं और साहित्य विजय सूरि १. पंजाब और सिंध में जैन मंदिर व ३१७ ४ भामाशाह संस्थाएं ३५१ अध्याय ४ जैनधर्म के सम्प्रदायों का इतिहास (१) गुजरांवाला नगर ३५१ (२) स्यालकोट १. दिगंबर पंथ-एक सिंहावलोकन ३२० (१) दिगंबर पंथ की उत्पत्ति ३५२ (३) लाहौर ३२१ (२) भगवान महावीर शासन व (४) कसूर ३५३ दिगंबर पंथ की मान्यता का (५) मुलतान नगर ३५३ तुलनात्मक अध्ययन ३२८ | (६) सिंध प्रदेश. Jain Education International २६४ الله الله لا مع مہ لہ سہ سمس س For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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