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आनन्द थयो छे, आमां जे कांई पुरावा आप्या छे, ते बधा बराबर छे, मुखवस्त्रिका सिद्धि छपायुं होय तो जरूर मोकलशो ।
(११) सदानन्दी जैन मुनि श्री छोटालाल जी महाराज एक पत्र द्वारा निम्न प्रकार से स्था० जैन के संपादक को लिखते हैं -
| अभिनन्दन ॥
पोतानी महत्ता वधारवामां अंतराय पड़े, अने चैतन्य पूजानी महत्ता वधे ते मूर्तिपूजक समाजना साधु महापुरुषों अने गृहस्थों ने कोई पण रीते रुचतुं न होवा थी कोई न कोई बहानुं मलतां स्थानकवासी समाज ऊपर भाषानो संयम गुमावीने अनेक प्रकारना आक्षेपो बारम्बार कर्यांज करे छे, अने जाणे स्थानकवासी समाजनुं अस्तित्वज मटाड़ी देवुं होय तेवो प्रयत्न सेवी रहेल छे ।
आ आक्रमणनो न्याय पुरःसर भाषा समिति ने साचवी ने पण जवाब आपवा जेटलीए अमारी समाजना पण्डितो विद्वानो, अने नवी नवी मेलवेली पदवीना पदवीधरो ने जराए फुरसद नथी, मोटे भागे अपवाद सिवाय दरेक ने पोताना मान पान वधारवानी अने वधुमां पोताना नाना वाड़ाने येन केन प्रकारे जालवी राखवानी अने एथीए वधु मारा जेवाने अनेक अतिशयोक्ति भरेला पोतानी कीर्तिना वणगा फुंकाववानी प्रवृत्ति आडे जराए फुरसद मलती नथी एवा वखते -
श्रीमान् रतनलाल दोशी सैलाना वाला शास्त्रीय पद्धति ए स्थानकवासी समाजनी जे अपूर्व सेवा बजावी रहेल छे, ते अति प्रशंसनीय छे, अने एना माटे मारा अन्तःकरणना अभिनंदन छे ।
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