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द्रव्य-निक्षेप ******** *********************************
(२) आनन्दादि श्रावकों ने पौषध शाला में प्रतिक्रमण स्वाध्याय ध्यान आदि क्रियाएं की किन्तु वहां भी स्थापना को स्थान नहीं मिला।
(३) अनेक साधु साध्वी आदि के चरित्र वर्णन में कहीं भी उक्त स्थापना का नाम मात्र भी कथन नहीं है।
(४) सुदर्शन, कोणिक, नन्दन मनिहार (मेंढक के भव में) ने भगवान् को लक्ष्य कर परोक्ष वन्दन किया है।
इसके सिवाय आत्मारामजी ने जैन तत्त्वादर्श पृष्ठ ३०१ में लिखा है कि -
"जेकर प्रतिमा न मिले तो पूर्व दिशा की तरफ मुख करके वर्तमान तीर्थंकरों का चैत्य वन्दन करें।"
___ यहां भी मूर्ति की अनुपस्थिति में स्थापना की आवश्यकता नहीं बताई।
इत्यादि पर से यह स्पष्ट हो जाता है कि गुरु आदि की अनुपस्थिति में स्थापना रखने की आवश्यकता नहीं। यह नूतन पद्धति भी मूर्ति-पूजा का ही परिणाम है, जो कि अनावश्यक अर्थात् व्यर्थ है।
२४. द्रव्य-निक्षेप ___ प्रश्न - द्रव्य निक्षेप को तो आप अवन्दनीय नहीं कह सकते क्योंकि - "तीर्थंकर के जन्म समय शक्रेन्द्रादि जन्मोत्सव करते हैं,
और निर्वाण पश्चात् शव का अग्नि संस्कार करते हैं, उस समय तीर्थंकर द्रव्य निक्षेप में होते हैं और देवेन्द्र उनको वन्दन करते हैं ऐसी हालत में द्रव्य निक्षेप अवन्दनीय कैसे कहा जाता है?
उत्तर - स्थापना की तरह द्रव्य निक्षेप भी वन्दनीय नहीं है, , क्योंकि वह भाव शून्य है, जन्मोत्सव क्रिया शक्रेन्द्रादि अपने
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