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६२ सिद्ध हुए तीर्थंकर और द्रव्य निक्षेप *****************************************
__ इस तरह सत्य को समझ कर पाठक अपना कल्याण साधे यही निवेदन है। २७. सिद्ध हुए तीर्थंकर और
द्रव्य निक्षेप प्रश्न - चौवीस तीर्थंकर वर्तमान में सिद्ध हो चुके हैं उनके आत्मा अब अरिहंत या तीर्थंकर के द्रव्य निक्षेप में ही है उन सिद्ध को अब अरिहंत या तीर्थंकर मानकर वन्दना स्तुति करते हो, क्य यह द्रव्य निक्षेप का वन्दन नहीं है?
उत्तर - उक्त कथन के समाधान में यह समझना चाहिये कि
जो तीर्थंकर या अरिहंत सिद्ध हो चुके हैं उनकी अभी वन्दन या स्तुति करते हैं वह द्रव्य निक्षेप में नहीं है, क्योंकि जो आत्माश्रित भाव-गुण अर्हतावस्था में थे वे सिद्धावस्था में भी कायम है। सिद्धावस्था में तो और भी गुणवृद्धि ही हुई है। फिर उन्हें सामान द्रव्य निक्षेप से कैसे कह सकते हैं? गुण पूजकों के लिये तो यह प्रक्ष ही अनुचित है।
सिद्धावस्था की आत्मा अरिहंत दशा का मूल द्रव्य होकर भी द्रव्य निक्षेप से विशेषता रखता है, कारण यहां गुणों से सम्बन्ध जिस प्रकार अणुव्रत वाला श्रावक जब महाव्रतधारी साधु हो जाता तब वह श्रावक का द्रव्य निक्षेप है, फिर भी गुण वृद्धि की अपेष वन्दनीय है, किन्तु वही साधु जो श्रावक से साधु बना था कर्मों जोग से संयम मार्ग से पतित हो जाय तो श्रावक पद से भी वन्दनी नहीं रहेगा क्योंकि वन्दन, नमन का स्थान है गुण, और उन श्रु चारित्र रूप गुणों की न्यूनता वाला बन जाने से वह आत्मा वंदनी
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