Book Title: Lonkashah Mat Samarthan
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 152
________________ श्री लोकाशाह मत - समर्थन ३३. गृहस्थ सम्बन्धी आरंभ और मूर्ति-पूजा प्रश्न गृहस्थ लोग अपने कार्य के लिये फल, फूल, पत्र, अग्नि, पानी आदि का आरम्भ करते हैं, गृहस्थ जीवन आरम्भ म जीवन है, इसमें यदि पूजा के लिये थोड़ा सा जल और कुछ फल फूल एक दो दीपक, धूप आदि अल्पारम्भ से प्रभु पूजा कर महान् लाभ उपार्जन किया जाय तो क्या हानि है ? - १११ उत्तर - आपका उक्त प्रश्न भी विवेक शून्यता का है। समझदार और विवेकवान श्रावक जल, फूलादि कोई भी सचित्त वस्तु आवश्यकतानुसार ही काम में लेते हैं, आवश्यकता को भी घटाकर थोड़ा आरम्भ करने का प्रयत्न करते हैं, आवश्यकता की सीमा में रहकर आरम्भ करते हुए भी आरम्भ को आरम्भ ही मानते हैं और सदैव ऐसे गृहस्थाश्रम सम्बन्धी आवश्यक आरम्भ को भी त्यागने का नोरथ करते हैं, श्रावक के तीन मनोरथों में सर्व प्रथम मनोरथ यही ऐसे श्राद्धवर्य कभी भी आवश्यकता से अधिक आरम्भ नहीं करते, ऐसी हालत में निरर्थक व्यर्थ का आरम्भ तो वे विवेकी श्रावक करें ही कैसे ? व्यावहारिक कार्यों में जहां द्रव्य व्यय होता है, वहां भी सुज्ञ मनुष्य आवश्यकतानुसार ही खर्च करता है, निरर्थक एक कौड़ी भी नहीं लगाता । और ऐसे ही मनुष्य संसार में आर्थिक संकट से भी दूर रहते हैं। जो निरर्थक आंख मूंद कर द्रव्य उड़ाते हैं, उनको अन्त में अवश्य पछताना पड़ता है। इसी प्रकार निरर्थक आरम्भ करने वाला भी अंत में दुःखी होता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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