Book Title: Lonkashah Mat Samarthan
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 195
________________ १५४ मूर्तिपूजक प्रमाणों से मूर्ति पूजा की अनुपादेयता ************* भविष्य में द्वादश वर्ष का दुष्काल पड़ेगा, उस समय कालिक आदि सूत्र विच्छेद जायेंगे, द्रव्य रखने वाले मुनि होंगे, चैत्य स्थापना करेंगे, लोभ के वश होकर मूर्ति के गले में मालारोपण करेंगे, मन्दिर, उपधान, उजमण करावेंगे, मूर्ति स्थापन व प्रतिष्ठा की विधि प्रकट करेंगे, अविधि मार्ग में पड़ेंगे और उस समय जो कोई साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका, विधि मार्ग में प्रवर्तने वाले होंगे, उनकी बहुत निंदा, अपमान, अप शब्दादि से हीलना करेंगे । प्रिय पाठक वृन्द ! श्रीमद्भद्रबाहु स्वामी का उक्त भविष्य कथन बराबर सत्य निकला, ऐसा ही हुआ और अब तक बराबर हो रहा है। श्रीमद् भद्रबाहु स्वामी के उक्त कथन को बताने वाली श्री व्यवहार सूत्र की चूलिका पर श्री न्याय विजयजी इतने क्रूद्ध हैं कि - यदि इनकी चलती तो उक्त चूलिका की समस्त प्रतियें एकत्रित कर हवन कुण्ड की भेंट कर देते, किन्तु विवशता वश सिवाय मिथ्या भाषण के अन्य कोई उपाय ही नहीं सूझता, जिसका परिचय पहले करा दिया गया है । (७) सम्बोध प्रकरण में हरिभद्र सूरि लिखते हैं कि - संनिहि महा कम्मं जल, फल, कुसुमाइ सव्व सचित्तं चेइय मठाइवासं पूयारंभाइ निच्चवासितं । देवाइ दव्वभोगं जिणहर शालाइ करणंच ॥ अर्थात् - प्रथम सचित्त जल, फूल, फूलों का आरम्भ पूजा के लिए हुआ, चैत्यवास और चैत्य पूजा चली, देव द्रव्य भोगना, जिन मन्दिरादि बनवाना चला। For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

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