Book Title: Lonkashah Mat Samarthan
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 208
________________ श्री लोकाशाह मत - समर्थन विधान खास शब्दों मांज दर्शाववामां आवे छे, पण कोइनी कथाओं मां थी के कोइना ओठां लइने अमुक २ आचार वा विधान उपजावी शकातो नथी।...... (आगे पृ० १२७ में ) .... ते छतां तेमां जे विधान नी गंध पण न जणाती होय ते विधान ना समर्थन माटे आपणे कथाओं नां ओठां लइए ने कोई ना उदाहरणों आपीए ते बाबत ने हुं 'तमस्तरण' सिवाय बीजा शब्द थी कही शकतो नथी, 'हुं हिम्मत पूर्वक कही शकुं छं के मैं साधुओ तेम श्रावको माटे देव दर्शन के देव पूजन नुं विधान कोई अंग सूत्रोंमा जोयुं नथी, वांच्यं नथी एटलुंज नहीं पण भगवती वगेरे सूत्रोमा केटलाक श्रावको नी कथाओं आवे छे, तेमां तेओनी चर्यानी पण नोंध छे परंतु तेमां एक पण शब्द एवो जणातो नथी के जे ऊपर थी आपणे आपणी उभी करेली देव पूजननी अने तदाश्रित देव द्रव्यनी मान्यताने टकावी शकीए । १६७ हुं आपणी समाज ना धुरंधरों ने नम्रता पूर्वक विनन्ति करूं छु के ओ मने ते विषेनुं एक पण प्रमाण वा प्राचीन विधान - विधि वाक्य बतावशे तो हुं तेओने घणोज ऋणी थइश । ...... ( आगे पृ० १३१ में)......हुं तो त्यां सुधी मानुं छं के श्रमण ग्रन्थकारो जेओ पंच महाव्रत ना पालक छे, सर्वथा हिंसा ने करता नथी, करावता नथी, अने तेमां सम्मति पण आपता नथी, जेओ माटे कोई जातनो द्रव्यस्तव विधेय रूपे होइ शकतो नथी, तेओ हिंसा मूलक आ मूर्तिवाद ना विधान नो अने तदवलम्बी देव द्रव्यवाद ना विधान नो उल्लेख शी रीते करे?" तत्त्वेच्छुक पाठक महोदयो ! मूर्ति पूजक समाज के एक प्रसिद्ध विद्वान् के उक्त तटस्थ विचार मनन करने में आपको भारी सहायता देंगे, इस पर से आप अच्छी तरह से समझ सकेंगे कि - हमारे मूर्ति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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