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अंतिम निवेदन **************************************** उन्मत्त मतान्ध व्यक्तियों का है। इसलिये आगमों के विधिवाद दर्शक प्रमाण ही पेश करें, कथाओं की ओट और शब्दों की खींचतान अथवा आगम आज्ञा की अवहेलना करने वाले ग्रन्थों के प्रमाण तो किसी भोले और ग्रामीण भक्तों को समझाने के लिए ही रख छोड़ें। मैं आप लोगों की सुविधा के लिए आप ही की मूर्ति-पूजा समाज के प्रतिभाशाली विद्वान् पं० बेचरदास जी दोशी रचित 'जैन साहित्य मां विकार थवाथी थयेली हानि' नामक पुस्तक में पंडित जी के विचार आपके सामने रखता हूँ जिससे आपको तत्त्व निर्णय में सरलता हो, देखिये पृ० १२५ से -
'मूर्तिवाद चैत्यवाद पछीनो छे, एटले तेने चैत्यवाद जेटलो प्राचीन मानवाने आपणी पासे एक पण एवं मजबूत प्रमाण नथी के जे शास्त्रीय (सूत्र विधि निष्पन्न) होय वा ऐतिहासिक होय, आम तो आपणे कुलाचार्यों शुद्धां मूर्तिवाद ने अनादि नो ठराववानी तथा वर्द्धमान भाषित जणाववानी बणगा फूंकवा जेवी वातो कर्या करीए छीए, पण ज्यारे ते वातो ने सिद्ध करवा माटे कोई ऐतिहासिक प्रमाण वा अंग सुत्रनुं विधि वाक्य मांगवा मां आवे छे त्यारे आपणी प्रवाह वाही परंपरानी ढाल ने आगल धरीए छीए अने बचाव माटे आपणा वडिलो ने आगल करीए छीए मैं घणी कोशिश करी तो पण परंपरा अने बाबा वाक्यं प्रमाणं सिवाय मूर्तिवाद ने स्थापित करवा माटे मने एक पण प्रमाण वा विधान मली शक्युं नथी वर्तमान कालमां मूर्ति पूजा ना समर्थन मां केटलीक कथाओ ने (चारण मुनि नी कथा, द्रौपदीनी कथा, सूर्याभ देवनी कथा अने विजयदेवनी कथा) पण आगल करवा मां आवे छे, किन्तु वाचकोए आ बाबत खास लक्षमा लेवानी छे के विधि ग्रंथोंमां दर्शावातो विधि आचार ग्रन्थों मां दर्शावातो आचार
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