Book Title: Lonkashah Mat Samarthan
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 197
________________ १५६ मूर्तिपूजक प्रमाणों से मूर्ति पूजा की अनुपादेयता *****************多多******************** के बने हुए कितने ही ऐसे स्वतंत्र ग्रन्थ दिखाई देते हैं जिसमें उनके रचनाकार कोई अन्य महात्मा होते हुए भी प्रश्नोत्तर का ढांचा भगवान् महावीर और श्री गौतम गणधर के परस्पर होने का रचा गया है, ऐसे ही जो सूत्र ग्रन्थ पूर्वधर आदि आचार्य रचित हैं, उनमें भी ऐसी ही शैली पकड़ी गई है, तदनुसार विवाह चूलिका के रचयिता श्री भद्रबाहु स्वामी ने भी जनता को भगवदाज्ञा का स्वरूप बताने के लिए उक्त कथन का श्री महावीर और गौतम गणधर के बीच होना बताया है, किन्तु वास्तव में यह रचना शैली ही है, श्री महावीर गौतम की उक्ति से सत्य नहीं, क्योंकि-प्रभु की उपस्थिति के समय तो यह प्रथा थी ही नहीं। इसीलिए किसी प्रामाणिक और गणधर रचित अंग शास्त्रों में भी ऐसा उल्लेख नहीं है, अतएव इस कथन को साक्षात् प्रभु और गणधर के बीच होना मानना भूल है, तो भी मूर्ति पूजा के निषेध में तो उक्त कथन बहुत स्पष्ट है, इस ग्रन्थ को मूर्ति पूजक लोग भी मानते हैं, इसके सिवाय अब किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं रहती। (१०) महा निशीथ सूत्र का तीसरा और पाँचवाँ अध्ययन तो इस मूर्ति पूजा की जड़ काटने में कुछ भी न्यूनता नहीं रखता, जो कि-मूर्ति पूजकों का मान्य ग्रन्थ है। इस तरह मूर्ति पूजक मान्य ग्रन्थों से भी मूर्ति पूजा निषिद्ध ठहरती है, आत्मार्थी बन्धुओं को इसका त्याग कर इतना समय आत्म-कल्याण की साधक सामायिक में लगाना चाहिए। मूर्तिपूजा से सामायिक करना श्रेष्ठ है। द्रव्य पूजा (अन्य सचित्त या अचित्त वस्तुओं से पूजा करना) सावद्य-हिंसायुक्त है, साथ ही व्यर्थ और निरर्थक भी। अतएव इसका Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214