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श्री लोकाशाह मत-समर्थन *********************************************
(८) इसी प्रकार उत्तराध्ययन सूत्र के पाठ का अर्थ करते हुए मूर्ति मण्डन प्रश्नोत्तर पृ० २७८ में लिखा है कि -
उत्तराध्ययनना २८ मां अध्ययन मां कह्या मुजब सम्यक्त्व ना आठ आचार सेवन कर्या छे तेमां सात क्षेत्र पण आवी गया, कारण के ते आचारों मां स्वधर्मी वात्सल्य तथा प्रभावना ए वे आचार कह्या छे, तो स्वधर्मी वात्सल्य मां साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका, ए चार क्षेत्र जाणवा, ने प्रभावना मां जिन बिंब, जिन मन्दिर तथा शास्त्र, ए त्रण आवी गया, एम आनन्द कामदेवादि तथा परदेशी राजाए पण करेल छे।"
इस प्रकार मन्दिर मूर्ति सिद्ध करने के लिए अर्थ का अनर्थ किया गया है।
() श्री भगवती सूत्र का नाम लेकर मूर्ति मण्डन प्रश्नोत्तर पृ० २८७ में जो अनर्थ किया गया है वह भी जरा देख लीजिये -
“स्थावर तीर्थ ते शत्रुजय, गिरनार, नन्दीश्वर, अष्टापद, आबू, सम्मेतशिखर, वगेरे छे, तेनी जात्रा जंघाचारण, विद्याचारण मुनिवरो पण करे छे, एम श्री भगवती सूत्र मां फरमाव्युं छे।"
यह भी अनर्थ पूर्वक गप्प ही है।
(१०) प्रश्न व्याकरण के प्रथम आस्रव द्वार में हिंसा के कथन में देवालय, चैत्यादि के लिए हिंसा करने वाले को मन्द बुद्धि और नरक गमन करने वाले बताये हैं, वहाँ उक्त मूर्ति मण्डन प्रश्नोत्तरकार अपना बचाव करने के लिए उन देवालयों को म्लेच्छों, मच्छीमारों, यवनों आदि के बताते हैं और इस बात को सिद्ध करने के लिए प्रश्नव्याकरण का एक पाठ भी निम्न प्रकार से पेश करते हैं -
‘कयरे जे तेसो परिया मच्छवं घासा उणिया जाव कूर कम्मकारी इमेव बहवे मिलेख जाति किं ते सव्वे जवणा।' (पृ० २८२)
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