Book Title: Lonkashah Mat Samarthan
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 189
________________ १४८ मूर्तिपूजक प्रमाणों से मूर्ति पूजा की अनुपादेयता ********************************************** (४) श्री वल्लभविजयजी गप्प मालिका में लिखते हैं कि श्री भद्रबाहु स्वामी ने व्यवहार सूत्र की चूलिका में विधि पूर्वक प्रतिष्ठा करने का कहा है। इन प्रमाणों पर पाठक विचार करें, इनसे यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि व्यवहार सूत्र की चूलिका श्री भद्रबाहु स्वामी रचित है, इसे अस्वीकार कर श्री संतबाल रचित, कल्पित तथा जाली कहने वाले स्वयं जालबाज और अविश्वास के पात्र ठहरते हैं। इस प्रकार एक सत्य वस्तु को असत्य कह कर तो श्री न्यायविजयजी ने न्याय का खून ही किया है। ऐसी अनेक करतूतें मात्र अपने मन कल्पित मत को जनता के गले मढ़ने के लिए की जाती है, इसलिए तत्त्वगवैषी महानुभावों को इनसे सदैव सावधान रहना चाहिये। अब यह सेवक तत्त्वेच्छुक महानुभावों से निवेदन करता है कि वे स्वयं निर्णय करे, सत्य का स्वीकार करते हुए स्वपर कल्याणकर्ता बनें। मूर्तिपूजक प्रमाणों से मूर्ति-पूजा की अनुपादेयता यह तो मैं पहले ही बता चुका हूँ कि मूल अंगोपांगादि ३२ सूत्रों में कहीं भी मूर्ति-पूजा करने, मन्दिर बनवाने, पहाड़ों में भटकने आदि की आज्ञा नहीं है और न किसी साधु या श्रावक ने ही वैसा किया हो, ऐसा उल्लेख ही मिलता है। सूत्रों में जहां-जहां श्रावकों का वर्णन आया है वहाँ-वहाँ उनके प्रभु वन्दन, धर्मश्रवण, व्रताचरण, व्रतपालन, कष्ट सहन आदि का कथन तो है। किन्तु मूर्ति-पूजा के सम्बन्ध में तो एक अक्षर भी नहीं है। कोणिक राजा प्रभु का परम सर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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