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श्री लोकाशाह मत-समर्थन ********************************************* २३. वन्दन आवश्यक और
स्थापना प्रश्न - षडावश्यक में तीसरा वन्दन नाम का आवश्यक है, यह वन्दनावश्यक गुरु की अनुपस्थिति में बिना "स्थापना" के किसके सन्मुख करते हो? वहां तो स्थापना रखना ही चाहिए अन्यथा यह आवश्यक अपूर्ण ही रह जाता है। आप के पास इसका क्या उत्तर है?
उत्तर - तीसरा आवश्यक गुरु वंदन, गुरु का विनय और उनके प्रति विपरीताचरण रूप लगे हुए दोषों की आलोचना करने का है, यह जहां तक गुरु उपस्थित रहते हैं वहां तक उनके सन्मुख उनकी सेवा में किया जाता है, किन्तु अनुपस्थिति में गुरु का ध्यान कर उनके चरणों को लक्ष्य कर यह क्रिया की जाती है, इसमें स्थापना की कोई आवश्यकता नहीं रहती।
तीसरे आवश्यक में बताई हुई ये बातें क्या स्थापना से पूछी जाती है कि-अहो क्षमा श्रमण! आपके शरीर को मेरे वन्दन करनेचरण स्पर्शने-से कष्ट तो नहीं हुआ? मुझे धार्मिक क्रिया करने की आज्ञा दीजिए, अहो पूज्य! क्षमा करिये, आपकी संयम यात्रा और इन्द्रिय मन बाधारहित हैं? आदि बातें क्या स्थापना के साथ की जाती है। कदापि नहीं, यह क्रिया साक्षात् के साथ या उनकी अनुपस्थिति में उन्हीं के चरणों को लक्ष्य कर की जा सकती है, और यह भाव निक्षेप में ही है। ऐसे परोक्ष वन्दन का इतिहास सूत्रों में भी मिलता है जहां स्थापना का नाम मात्र भी उल्लेख नहीं है, देखिये।
(१) शक्रेन्द्र ने अवधिज्ञान से प्रभु को देखकर सिंहासन छोड़ा और ७-८ कदम उस दिशा में बढ़कर परोक्ष वन्दन किया किन्तु वहां भी स्थापना का उल्लेख नहीं है।
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