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हिन्दी संस्करण के विषय में लेखक का
किंचित् निवेदन
प्रस्तुत पुस्तक का गुजराती संस्करण प्रकाशित होने के थोड़े दिन बाद ही कई मित्रों की ओर से हिन्दी संस्करण प्रकाशित कर देने की सूचनाएं मिली।
यद्यपि मेरी इच्छा इस पुस्तक के हिन्दी संस्करण प्रकाशित करने की नहीं थी, क्योंकि मैं चाहता था कि - मू० पू० श्री ज्ञानसुन्दरजी के मूर्तिपूजा के प्राचीन इतिहास में मूर्ति पूजा को लेकर हम पर जो आक्रमण हुए हैं, उसी के उत्तर में एक ग्रन्थ निर्माण `किया जाय, जिससे इस पुस्तक के हिन्दी संस्करण की आवश्यकता ही नहीं रहे, किन्तु मित्रों के अत्याग्रह और उस ग्रन्थ के प्रकाशन में अनियमित विलम्ब होने के कारण इस पुस्तक का हिन्दी संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है।
सर्व प्रथम मैंने “लोंकाशाह मत - समर्थन" हिन्दी में ही लिखा था, उसका गुजराती अनुवाद " स्थानकवासी जैन" के विद्वान् तंत्री श्रीमान् जीवणलाल भाई ने किया था, किन्तु असल हिन्दी कॉपी वापिस मंगवाने पर बुक पोष्ट से भेजने से मुझे प्राप्त नहीं हो सकी, इसलिए गुजराती संस्करण पर से ही पुनः हिन्दी अनुवाद किया गया।
इस अनुवाद में मैंने बहुत से स्थानों पर बहुत परिवर्तन कर दिया है, परिवर्तन प्रायः भावों को स्पष्ट करने या विस्तृत करने के विचार से ही हुआ है, इसलिए गुजराती संस्करण वाले भाइयों को भी इसे देखना आवश्यक हो जाता है।
जो सज्जन विद्वान् और संकेत मात्र में समझने वाले हैं उनके लिए तो प्रस्तुत पुस्तक ही ज्ञानसुन्दर जी की पुस्तक के उत्तर में
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