________________
श्री लोकाशाह मत-समर्थन
१६
*******
**
**
****
**
***
**
********************
दीपावली पर बही, दवात, कलम, धन, सुपारी के बनाये हुए गणेश, कल्पित लक्ष्मी आदि की पूजा करते हैं, ये सभी कार्य सांसारिक पद्धति के अनुसार है, इसमें धर्म का कोई सम्बन्ध नहीं है। न कोई सम्यक्त्वी ऐसी क्रियाओं में धर्म मानते ही हैं। इस प्रकार के लौकिक कार्य पूर्व समय में बड़े-बड़े श्रावकों ने भी किये हैं, उनमें भरतेश्वर, अरहन्नक श्रावक आदि के चरित्र ध्यान देने योग्य हैं। ऐसे सांसारिक कृत्यों को धर्म कहना, या इनकी ओट लेकर निरर्थक पाप वर्द्धक क्रिया में धर्म होने का प्रमाणित करना, जनता को धोखा देना है।
यदि थोड़ी देर के लिये हम हमारे इन भोले बन्धुओं के कथनानुसार देवलोक स्थित मूर्तियों को तीर्थंकर मूर्ति मान लें तो भी किसी प्रकार की बाधा उपस्थित नहीं होती, क्योंकि जिस प्रकार वर्तमान समय में आदर्श नेताओं के चित्र मूर्तिएं स्मारक रूप में बनाये जाते हैं। बम्बई में स्वर्गीय विट्ठलभाई पटेल की प्रतिमा है, महाराणी विक्टोरिया की मूर्ति बड़े-बड़े शहरों में रही हुई है, इसी प्रकार महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, गोखले आदि के हजारों की संख्या में चित्र तथा कहीं-कहीं किसी की मूर्ति भी दिखाई देती है, कई देशी राज्यों में राजाओं के पुतले (मूर्तिये) बड़ी सजधज के साथ बगीचों (गार्डनों) में रखे हुए मिलते हैं, ये सभी स्मारक हैं, माननीय पुरुषों की यादगार में बने हैं, इसी प्रकार जगत हितकर्ता विश्वोपकारी, देवेन्द्र नरेन्द्रों के पूजनीय, अनन्तज्ञानी प्रभु की मूर्तिएं भक्तों द्वारा बनाई जाय तो इसमें आश्चर्य ही क्या है? जब हम सभी कलाओं के साथ चित्रकला को भी अनादि मानते हैं और देवों की कला कुशलता विशिष्ट प्रकार की कहते हैं तो फिर महान् ऐश्वर्यशाली देव जो प्रभु के उत्कृष्ट रागी और भक्त हैं, वे यदि उनकी हीरे
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org