________________
श्री लोंकाशाह मत - समर्थन
*******
*********************
******
ऐसा मिथ्या प्रपंच क्यों करने लगे ? यह बात अच्छी तरह समझ में आ सके, ऐसी सरल है ।
अंबड़ - श्रावक (संन्यासी)
प्रश्न - अंबड़ श्रावक ने जिन प्रतिमा वांदी, ऐसा स्पष्ट कथन औपपातिक सूत्र में है, यह तो आपको मान्य है न?
उत्तर उक्त कथन भी आनंद श्रावक के अधिकार की तरह निस्सार है, यहाँ भी आप प्रसंग को छोड़ कर ही इधर उधर भटकते हैं, क्योंकि अंबड़ परिव्राजक ने निम्न प्रकार से प्रतिज्ञा की है -
णो कप्पइ अण्णउत्थिएवा, अण्णउत्थियदेवयाणिवा, अण्णउत्थिय परिग्गहियाणि अरिहंत चेइयाणि वा, वंदित्तए वा, णमंसित्तए वा, जावपजुवासित्तए वा, गणत्थ अरिहंते वा, अरिहंत चेइयाणि वा, वंदित्तए वा, णमंसित्तए वा ।
नोट - यह पाठ जो यहाँ दिया गया है सो केवल गुजराती प्रति में ही है और गुजराती प्रति में भी किसी अन्य प्रति से दिया गया होगा। किन्तु अभी आगमोदय समिति की प्रति का अवलोकन किया तो उसमें अकल्पनीय प्रतिज्ञा में 'अरिहंत' शब्द है ही नहीं, हमारी समाज में अब तक बिना ढूंढ़े किसी भी प्रति का अनुकरण कर अशुद्ध पाठ दे दिया जाता है, यह प्रथा विचारकों को भ्रम में डाल देती है इसलिए हमें सच्चे शोधक बनना चाहिए, सच्चे अन्वेषक के सामने पूर्व की चालाकियां अधिक समय नहीं ठहर सकती। आशा है समाज के विद्वान इस ओर ध्यान देंगे, आगमोदय समिति की प्रति
-
३१
का पाठ इस प्रकार है -
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org