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श्री लोकाशाह मत - समर्थन
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'यद्यपि उपाशकदशांग में यह पाठ नहीं है' क्योंकिपूर्वाचार्यों ने सूत्रों को संक्षिप्त कर दिये हैं तथापि समवायांग में यह बात प्रत्यक्ष है ।
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इसमें विजयानन्द सूरि साफ स्वीकार करते हैं कि - 'उपासक - दशांग में (जिसमें कि आनन्द श्रावक के सम्पूर्ण चरित्र का चित्रण किया गया है) मूर्तिपूजा सम्बन्धी पाठ नहीं है।' अतएव आनन्द श्रावक को मूर्तिपूजक कहना मिथ्या ही है ।
अब विजयानन्दजी ने जो सूत्रों के संक्षिप्त होने का कारण बताया और इसलिये समवायांग का प्रमाण जाहिर किया है। उस पर भी थोड़ा विचार किया जाता है -
(१) स्वामीजी ने उपासकदशांग के आनन्दाधिकार में मूर्तिपूजा का पाठ नहीं होना, इसमें सूत्रों का संक्षिप्त होना कारण बताया है। यह भी असंगत है, यह दलील यहां इसलिये लागू नहीं हो सकती कि -जिस आनन्द के चरित्र कथन में सूत्रकार ने उसकी ऋद्धि, सम्पत्ति, गाड़े, जहाजें, गायें आदि का वर्णन किया हो, जिसके वंदन, व्रताचरण के वर्णन में व्रतों का पृथक्-पृथक् विवेचन किया हो । घर छोड़कर किस प्रकार पौषधशाला में धर्माराधन करने गये, किस प्रकार एकादश प्रतिज्ञाएँ आराधन की और अवधिज्ञान पैदा हुआ, गौतम स्वामी को वन्दन करना, परस्पर का वार्तालाप, गौतमस्वामी को शंका उत्पन्न होना, प्रभु का समाधान करना, गौतमस्वामी का आनन्द से क्षमा याचने आना, आनन्द का अनशन करके स्वर्ग में जाना, इत्यादि कथन जिसमें विस्तार सहित किये गये हों। यहां तक कि खाने पीने के चावल, घी, पानी आदि कैसे रक्खे आदि छोटी-छोटी बातों का
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