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ही एक व्यक्ति था—नेपोलियन । नेपोलियन कहता था कि उसके शब्द-कोष में 'असंभव' नाम का कोई शब्द नहीं है । इसी हौंसले के बल पर वह दुर्गम घाटियों को पल भर में पार कर जाता था।
__ऐसे ही एक और महानुभाव थे—सुकरात । एक बार सुकरात सरोवर में स्नान कर रहे थे। सुकरात से एक युवक ने पूछा-'महाशय,क्या तुम यह बताओगे कि ज़िंदगी में सफल होने का राज़ क्या है ?' युवक सुकरात तक पहुँच चुका था। उसने झट से युवक को पकड़ा और पानी में डूबो दिया। वह आदमी छटपटाने लगा। सुकरात ने अपनी सारी ताकत लगाकर उसे दबाये रखा, मगर युवक की सहन-क्षमता जवाब दे गई । उसने पूरी ताकत लगाकर सुकरात को एक तरफ धकेल दिया । वह तालाब से बाहर की ओर भागा।
बाहर निकलकर युवक ने सुकरात से कहा—'तुम्हारी यह बदतमीजी अक्षम्य है, सुकरात ।' सुकरात ने हँसते हुए कहा—'तुम अपने प्रश्न का समाधान भी चाहते हो और मरने से भी डरते हो । तुम ज़रा बताओ कि जब मैंने तुम्हें पानी में डुबोया तो तुम्हारी अन्तिम इच्छा क्या थी?' युवक ने कहा—'तब मेरी एकमात्र इच्छा जीने की थी।' सुकरात ने तब कहा—'सफलता के लिए इससे बड़ा और कोई मंत्र नहीं होता है, जहाँ आदमी के पास केवल एक ही इच्छा बच जाए और वह इच्छा जीने की इच्छा हो।
इच्छा-शक्ति और आत्म-विश्वास के बल पर ही लक्ष्यों को पाया जा सकता है । आत्म-विश्वास से ही बड़ी-से-बड़ी चट्टानों को भी हटाया जा सकता है और अपनी ज़िंदगी की हर पराजय को विजय में बदला जा सकता है । ध्यान रखें, जीवन में वे जरूर जीतेंगे, जिनके भीतर जीत जाने का पूरा विश्वास है।
आदमी अपना लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाता, क्योंकि उसका स्वाभिमान बड़ा कमजोर है । आदमी में कभी भी अपने आप पर आत्म-गौरव करने का भाव ही नहीं उठता । आपने शायद धर्म की किताबों में इसे अहंकार के रूप में पाया है, पर मैं कहता हूँ कि आदमी कभी-कभी अपने आप पर भी गौरव करना सीखे कि ईश्वर ने मुझे इस जीवन के नाम पर कितनी बड़ी महान् सौगात प्रदान की है।
सदा अपने आप पर गौरव करो । कभी भी अपने आपको दीन-हीन और गरीब मत समझो। स्वयं को हमेशा करोड़पति समझो। हमारी आँखें, हृदय, गुर्दे
लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ wo
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