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भय के भूत उतने ही सवार होंगे, जितने कि आप उन भूतों से घबराएँगे । जितने हम निर्भय होते चले जाएँगे, भय के भूत हमसे उतने ही भागते चले जाएँगे । कोई कहता है कि अमुक मकान में मत जाना, उसमें भूत रहते हैं । कोई कहता है कि रात को सोये-सोये ही मुझे भूत दिखाई देता है । कोई कहता है कि मैंने देखा अपने मौहल्ले में दूर एक सफेद - सा भूत हिल रहा था । उनसे पूछा जाये कि भूतु हिल रहा था या किसी आदमी की धोती हिल रही थी ? दूर से भूत दिखाई देते हैं, लेकिन जैसे ही उसके पास जाओ; यथार्थ सामने आ जाता है, कथित भूत भाग जाता है ।
भय : मन का संवेग भर
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आदमी सदैव भय से ग्रस्त रहता है । आखिर वे मूलस्रोत, मूल कारण क्या हैं, जिनके चलते आदमी भय की जकड़ में आता है ? फ्रायड को पढ़ो या दूसरे मनोवैज्ञानिकों को, वे कहते हैं कि मनुष्य जब से जन्म लेता है, भय की दशा उसके चित्त में सदा-सदा रहती है । मनुष्य अपने साथ मूलत: तीन संवेगों को लेकर जन्म लेता है— पहला है — प्रेम, दूसरा है — भय और तीसरा है - क्रोध | मनुष्य के संपूर्ण जीवन में ये तीन संवेग काम करते हैं ।
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आपने पाया होगा कि जैसे ही बच्चा रोता है, माँ उसे छाती से लगाती है । प्रेम का संवेग उठा, उसकी पूर्ति हुई, बच्चा शांत हो गया । बच्चा सोया हुआ था कि तभी आपके हाथ से गिलास छूट गई, ज़ोर की आवाज़ हुई, बच्चा चौंक उठा, रो पड़ा । यह मनुष्य के भय का संवेग हुआ । आपने बच्चे के हाथ से उसका खिलौना छीन लिया, अब देखो बच्चा किस तरह से हाथ-पाँव पटकता है; किस तरह से छाती पीटता है । यह हुआ उसके क्रोध का संवेग । मनुष्य जन्म के साथ ही प्रेम, भय और क्रोध को लेकर आता है । हमारे अपने ही चित्त में प्रेम है, भय है और इसी में क्रोध है ।
भय से शक्ति का क्षय
भय मनुष्य का सबसे बड़ा घातक शत्रु है । विश्वास और विकास दोनों ही इससे कुंठित हो जाते हैं । भय मानसिक कमेजारी है । मन दुर्बल हो जाए, तो शरीर भी दुर्बल हो जाता है । निर्भय मन स्वस्थ शरीर का आधार बनता है । रोग कटते हैं मनोबल और आत्मविश्वास के बूते पर । इसलिए भय से मुक्त होना स्वस्थ
लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ
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