Book Title: Lakshya Banaye Purusharth Jagaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 96
________________ हमारी ओर से सबकी भलाई का ही प्रयास हो, पर नेकी कर कुएँ में डाल । भलाई करें और भूल जाएँ। अपनी की हुई भलाई के अहसान का कभी किसी को अहसास न करवाएँ । जिसका हमने भला किया है और वह हमारा बुरा कर बैठा हो, तो खेद न लाएँ। जिसके पास जो होता है, वह वही देता है । तुम्हारे पास भलाइयों का भंडार था, तुमने भलाई की । उसकी ओर से बदले में बुराइयाँ लौटें, तो उसके प्रति दया-भाव लाते हुए मात्र मुस्कुरा दीजिए । जीवन में आने वाली हर विपरीतता पर जो मुस्कान और माधुर्य से भरा हुआ रहता है, वह जीवन और जगत के मन्दिर का अखंड दीप है, जिसकी रोशनी से उसका परिसर तो रोशन होता ही है, उसके प्रकाश को देखकर मंदिर के देवता भी प्रमुदित होते हैं । ००० www s लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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