________________
हो?'
उस क्लास-टीचर द्वारा कही गई वे पंक्तियाँ मेरे जीवन-परिवर्तन की प्रथम आधारशिला बनी। शायद उस टीचर का नाम था— श्री हरिश्चन्द्र पांडे । जिन्होंने न केवल मुझे अपने भाई के ऋण का अहसास करवाया, अपितु शिक्षा के प्रति मुझे बहुत गंभीर बना दिया और तब से प्रथम श्रेणी से कम अंकों से उत्तीर्ण होना मेरे लिए चुल्लू भर पानी में डूबने जैसा होता । मैं शिक्षा के प्रति सकारात्मक हुआ।
माँ सरस्वती ने मुझे अपनी शिक्षा का पात्र बनाया। - व्यक्ति यदि अपने जीवन-जगत में घटित होने वाली घटना से भी कुछ सीखना चाहे, तो सीखने को काफी-कुछ है । सिर के बाल उम्र से नहीं, अनुभव से पके होने चाहिए । मनुष्य आयु से वृद्ध नहीं होता, वह तब वृद्ध हो जाता है जब उसके विकास की गति अवरुद्ध हो जाती है।
किसी वृद्ध जापानी को उसकी पचहत्तर वर्ष की आयु में चीनी भाषा सीखते हुए देखकर किसी ने कहा—'अरे भलेमानुष, तुम इस बुढ़ापे में चीनी भाषा सीखकर उसका क्या उपयोग करोगे? तुम तो मृत्यु की डगर पर खड़े हो । पीला पड़ चुका पत्ता कब झड़ जाए, पता थोड़े ही है।' उस वृद्ध ने प्रश्नकर्ता को घूरते हुए देखा और कहा—'आर यू इन्डियन?' प्रश्नकर्ता चौंका । उसने कहा—'निश्चय ही मैं भारतीय हूँ, पर मेरे भारतीय होने का इस प्रश्न के साथ क्या सम्बन्ध ?' वृद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा-'भारतीय हमेशा अपने लिए मृत्यु को देखता है और जापानी हमेशा जीवन को । जो सवाल तुमने मुझे आज पूछा है, वह मुझसे तब भी किया . गया था जब मैं साठ वर्ष का था। मैंने इस दौरान सात नई भाषाएँ सीखी हैं और पूरे विश्व का दो बार भ्रमण किया है।' . आँखों में बसे जीवन का सपना
जिनकी आँखों में मृत्यु की छाया है, उनका नजरिया नकारात्मक है । जिनकी आँखों में सदा जीवन का सपना है, वे सकारात्मक दृष्टि के स्वामी हैं। दृष्टि के नकारात्मक होते ही मन में उदासी और निराशा घर कर लेती है; व्यक्ति की चिंतन-शक्ति चिंता का बाना पहन लेती है; बुद्धि की उच्च क्षमता होने के बावजूद जीवन में मानसिक रोग प्रवेश कर जाते हैं । हम यदि अपने नजरिये को बदलने में सफल हो जाते हैं, तो जीवन की शेष सफलताएँ आपोआप आत्मसात् हो जाती हैं।
xommmmm
लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org