Book Title: Lakshya Banaye Purusharth Jagaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 79
________________ दुर्व्यवहार का ही प्रतिफल है । आप किसी विवाह-उत्सव में गये और आपने वहाँ इक्यावन रुपये का लिफाफा थमाया, तो बदले में आप भी इक्यावन रुपये ही पाएँगे, एक सौ एक नहीं । यही जगत की कर्म-प्रकृति है। जगत : प्रतिध्वनि मात्र यह जगत एक प्रतिध्वनि है, यहाँ आप जो चिल्लाओगे, वही लौटकर आप पर बरसेगा। अगर हमने किसी को गालियाँ दी हैं तो मानकर चलो कि आज नहीं तो कल वे गालियाँ लौटकर आएँगी, फिर उनसे भय कैसा ! अगर उनसे बचना चाहते हो तो पहले से ही सावधानी बरतो और मुँह से गाली मत निकालो। गीत के बदले में गीत और गालियों के बदले में गालियाँ ही मिलती हैं। आप किसी तलैया में पत्थर फेंककर देखो तो पाओगे कि एक तरंग पैदा हुई । वह तरंग किनारे पर पहुँचती है, लेकिन वहीं खत्म नहीं होती, अपितु वहाँ से लौटकर वहीं आती है, जहाँ से उसका उद्भव हुआ था, ठीक उसी स्थान तक जहाँ पत्थर गिरा था । यही जीवन का विज्ञान है कि हम जो अपनी ओर से औरों के साथ गलत व्यवहार करते हैं, बुरा आचरण करते हैं, छल-प्रपंच करते हैं, वह जाता है और किनारे से लौटकर पुन:-पुन: आता है । अभी तो आप बड़े खुश होते हैं कि आपने दूध में मिलावट कर दुनिया को ठगा, मगर वही मिलावट आपके आँखों के तारे के बीमार पड़ने पर इंजेक्शन में मिलावट' के रूप में लौटती है । तब आप हक्के-बक्के रह जाते हैं। आपको अपने किये पर पछतावा होता है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है । काश, पहले सँभल जाते। दुर्व्यवहार के बदले में दुर्व्यवहार ही लौटकर आता है । आज आपने किसी पड़ौसी के साथ दुर्व्यवहार किया, तो उस दुर्व्यवहार की तरंग ब्रह्माण्ड तक पहुँचेगी और आपके अधिकारी को प्रभावित करेगी। फिर आपका अधिकारी आपके साथ दुर्व्यवहार करेगा। यह जगत लौटाता है । अपने तरीके से लौटाता है । आप चलते वक्त अगर किसी चींटी को बचाते हैं, तो ऐसा करके आपने चींटी को ही नहीं, अपने आपको भी बचाया है, क्योंकि यह चींटी कोई और नहीं; सम्भव है हमारे अपने दिवंगत दादाजी ही इस रूप में हों । बच सको तो इस तरह तुम पाप से बच जाओ। यह जगत की अनूठी व्यवस्था है। जो व्यक्ति आज किसी बकरे को काटता है, तो वह यह मानकर चलें कि स्वस्थ सोच के स्वामी बनें ७२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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