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की जैसी सोच होगी, वैसे ही उसके विचार और वचन होंगे। जैसे उसके विचार होंगे वैसे ही उसके कर्म होंगे, जैसे कर्म होंगे वैसा ही उसका चरित्र बनेगा। जो व्यक्ति अपने चरित्र को निर्मल रखना चाहता है, अपनी आदतों और कर्मों को सुधारना चाहता है, वह अपना ध्यान जड़ों की ओर आकर्षित करे । जब तक वह जड़ों तक नहीं पहुँचेगा, वह शरीर से स्वस्थ रहकर भी मन से हमेशा रुग्ण बना रहेगा । जिस दिन तुम अपने मन से स्वस्थ हो गए, तुम्हारा शरीर अपने आप स्वास्थ्य के सोपानों को पार करने लग जाएगा। बेहतर फलों के लिए बुवाई हो बेहतर
मनुष्य का मस्तिष्क एक बगीचे की तरह होता है, जिसमें अगर अच्छे बीज बोओ, तो अच्छे फल और फूल लगेंगे और बीज केक्टस और काँटों के होंगे तो वे केक्टस और काँटे ही पैदा करेंगे। अगर बगीचे में कुछ भी न बोया गया तो निश्चित है कि घास-फूस तो उग ही आएगी । इंसान को दो-तरफा प्रयास करने होंगे—पहला, अच्छे बीच मस्तिष्क के बगीचे में बोए जाएँ और दूसरा, जो अवांछित खरपतवार, घास-फूस उग आई है, उसे उखाड़ फेंके । ऐसा नहीं कि केवल प्रेम और सम्मान के ही बीज बोने हैं, वरन् क्रोध और वैर की जो अनचाही झाड़ियाँ उग आई हैं, उन्हें भी समूल नष्ट करना होगा।
व्यक्ति माली की तरह मस्तिष्क के बगीचे की निराई-गुड़ाई का पूरा-पूरा ख्याल रखे, वरना जंगली घास ऐसी जड़ें जमा लेंगी कि उन्हें निर्मूल करना मुश्किल होगा। आप यहाँ आए हैं तो संभव है कि ऐसी कुछ बातें मिल जाएँ कि जो काम की हों । जो भी 'सार-सार' मिले, उसे ग्रहण कर लें और थोथा को उड़ा दें। हर स्वीकार्य सोच और विचार को ग्रहण कर लें और शेष को एक तरफ कर दें।
जैसा बीज बोओगे, वैसा ही फल पाओगे। आम के बीज बोओगे तो आम के फल मिलेंगे और बबूल के बीज बोओगे तो बबूल के फल ही मिलेंगे। जैसा आप सोचेंगे, वैसा ही आपके जीवन में घटित होगा। आज व्यक्ति जैसा है, वह अतीत में सोचे गए विचारों का परिणाम है और भविष्य में व्यक्ति वर्तमान विचारों का परिणाम होगा। आज अगर हमारे जीवन में आक्रोश, स्वार्थ, छीना-झपटी, छल-प्रपंच है तो जरूर हमने अतीत में ऐसे बीज बोये होंगे। कोई भी दूसरा आदमी अगर हमारे साथ बुरा व्यवहार करता है तो यह हमारे द्वारा अतीत में किये गए
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लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ
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